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________________ एकजीवापेक्षया Jain Education International काल मार्यमा उत्कृष्ट विशेष नानाजीवापेक्षया । प्रमाण प्रमाण जघन्य । नं०१ नं०२ विशेष स्थान नं०१/०२/ जघन्य सर्वदा विच्छेदाभाव । सर्वदा विच्छेदाभाव, २६२-। | अन्तर्मुहूर्त | शुक्लसे पद्म फिर तेज २६३ मूलोघवत् २६४ -मूलोघवत् पद्म १८ सा०+पच्य/ तेजवत् परन्तु तेजसे पद्म व सहस्रार असं० में उत्पत्ति सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वना विच्छेदाभाव २१२ २६३ अन्तर्मुहूर्त | मिथ्यादृष्टिवत् तेजवत् अन्तर्मुहूर्त कम १८३सा० । अन्तर्मुहूर्त " २६७ १समय तेजवत तेजवत २६८ __. १ २६६ सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाष ३०० ३०१ । पद्मसे शुक्ल फिर पद्म ३१ सा०+अन्त- द्रव्यलिगी मुनि स्व आयुमें अन्तर्नु । शेष रहनेपर शुक्ललेश्या धार उपरिम ग्रे वेयकमें उपजा -भूलोघवत् - मूलोधवत् - ३०२ ३०३ सर्बदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव ३०४ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश अन्तर्मु पद्मसे शुक्ल फिर पद्म For Private & Personal Use Only ३३ सागर + | अनुत्तर विमानोसे आकर मनुष्य | १ अन्तर्मुहूर्त हुआ। अन्तर्मु. पश्चात् लेश्या परिवर्तन | अन्तर्मुहुर्त तेजवद " सवंदा ३०६ १समय तेजवत् . ३०७ मूलोधवद ३०५ --मूलोधवत् ११ भव्यत्व मार्गणा भव्य ४२-४३ सर्वदा विच्छेदाभाव सबंदा विच्छेदाभाव' ३१० १४ अभव्य भव्य (सादिसान्त) ३०६ अन्तर्मुः अनादि सान्त ( अयोग केवलीके अन्तिम समय तक) सादिसान्त (सम्यक्त्वोत्पत्ति के पश्चाव वाले विशेष भव्यत्वकी अपेक्षा) अनादि अनन्त गुण स्थान परिवर्तन कुछ कम अर्ध मूलोधवत पु० परि० -मूलोषवत्-- अनादि अनन्त २-१४ ३१४ | मूलोधवत सर्वदा विच्छेदाभाग ३१६ अभव्य ६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ | १२ सम्यक्त्व मागणा सम्यक्त्वसामान्यो ... सर्वदा बिच्छेदाभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव १८६ अन्तर्मुः ६६ सा०+४ को पूर्व (दे० काल/11 www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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