SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाण नानाजीवापेक्षया एकजीवापेक्षया प्रमाण काल Jain Education International गुण मार्गणा स्थान विशेष विशेष मा०२-१४ नं० १ नं० २ | जयन्य विशेष उत्कृष्ट | विशेष । न०१. नं०३ | जघन्य | सू० । सू० सर्वदा| विच्छेदाभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव १५-६६ भवनवासी | देव सामान्यवद स्थान परि० १२ सागर |सम्यक्त्व सहित पूरा काल विता -१ अन्त० । संयत मनुने वैमानिककी आयु बाँधी ...-४ अन्त० | पीछे अपवर्तना घात द्वारा भवनवासी | की रह गयी। वहाँ ६ पर्याप्ति प्राप्तकर सम्यक्त्वी हो रहा। १३पज्य-१अन्त० मिथ्यात्व सहित पूर्ण काल बिताया मूलोघवद देव सामान्यवत् स्थान परि०१३पत्य-४अन्त भवनवासीवत व्यन्तरवव व्यन्तर ७ मूलोघवद सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव ३१-६६ - | व्यन्तरवत् ६४ १-४६४-६ ज्योतिषी - | सौधर्म-सहस्रार १ सर्वदा विच्छेदाभाव | सर्वदा विच्छेदाभाव -६ For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १०५ मूलोघवत् सर्वदा बिच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव ६५-६६ आनत-अच्युत -१०० ० | देव सामान्यवत् स्थान परि०पल्य/असं अधिका अद्घायुष्ककी अपेक्षा (मिथ्यात्वसे २-१८ सागर | अद्धायुका अपवर्तना घात कर मरे तो) क्रमशः २,७,१०,१४,१६,१८ सागर+ पत्य/अंसंख्यात मूलोघवत् अन्त मुं० | देव स मान्यवत् स्थान परि० क्रमशः अन्त०कम क्रमश. २३, ७३, १०३, १४३ | २३, १८३१६३, १८३ सागरसे अन्तर्मु. कम क्र.२० व २२सा | उत्कृष्ट आयु पर्यन्त वहाँ रहे मूलोधवत ० | देव सामान्यवत स्थान परि० क्र. २० व २२सा० उत्कृष्ट आसु पर्यन्त वहाँ रहे क्र. २३-३१ सा० नौ वेयकों में क्रमशः २३,२४,२५,२६ २७,२८,२६.३० व ३१ सागर मूलोषवद अन्तर्मु० देव सामान्यवर स्थान परि०क्रमशः२३-३१सा. इसीके १ले गुण स्थानवत [ ३१ सा०+ मिथ्यात्व गुणस्थानका अभाव ३२ सागर उत्कृष्ट आयु १समय ३२ सागर ३३ सागर मूलोधवत सर्वदा | विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव ६६-१०० " १६-१०० नव वेयक . | मूलोषवद दा| विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव १६-१०० नव अनुदिश | - १०४ विजय अपराजित ४ : : : ६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ १०४ | सर्वार्थ सिद्धि | ३३ सागर | जघन्य उत्कृष्ट दोनों समान ३३ सागर www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy