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________________ अनंत (ध. ५ / २४) जघन्य अनन्तानन्त न. न. ज. । (न न ज ) 'ज्ञ' (न नज) {(7) Jain Education International + ६ राशि I त्र) (न.न ज ) त्रि |{ Collima ) } B छः राशि - सिद्ध + साधारण वनस्पति निगोद वनस्पति काय + अतीत व अनागत कालके समय या व्यवहार काल + पुद्गल + अलो काकाश । न...) { (क्ष) (अ.स) (क्ष) (न न ज ) (न. न ज ) यदि 'क्ष' दो राशि धर्म व अधर्म द्रव्य के अगुरुलघु गुणोंके अविभाग प्रतिच्छेद । {* (k) (क्षक्ष) 97 + दो राशि ५७ अनत तब केवल ज्ञान राशि > ज्ञ उत्कृष्ट अनन्तानन्तन न उ, ज्ञ+ केवलज्ञान व केवलदर्शन के अविभाग प्रतिय २. अनन्त निर्देश १. अनन्त वह है जिसका कभी अन्त न हो। ध १/१ १,१४१ / ३६२ / ६ न हि सान्तस्यानन्त्य विरोधात् । सव्ययनिरायस्य राशे कथमानन्त्यमिति चेन्न, अन्यथैकस्याप्यानन्त्यप्रसङ्ग । सव्ययस्यानन्तस्य न क्षयोऽस्तीत्येकान्तोऽस्ति स्वसंख्येयासख्येय भागव्ययस्य राशेरनन्तस्यापेक्षया तद्विव्यादिसख्येयराशिव्ययतो न क्षयोऽपोत्यभ्युपगमात् । अर्ध पुद्गल परिवर्तन कालस्यानन्तस्यापि क्षय दशनादमेकान्तिक आनरयहेतुरिति चेस उभयोभिनिबन्ध प्रा नन्तयो' साम्याभावतोऽर्द्ध पुद्गल परिवर्तनस्य वास्तवानन्त्याभावात् । तथा अपरिवर्तनास सक्षयोऽप्यनन्नुप पर्यन्तत्वात् । केवलमनन्तस्तद्विषयत्वाद्वा । जीवरा शिस्तु पुन' सख्येयराशिक्षयोऽपि निर्मूलप्रलयाभावादनन्त इति । कि च सम्ययस्य निरवशेषम्युपगम्यमाने कालस्यापि निरवशेषक्षयो जायेत सध्य I अस्तु चेन्न, सक्लपर्यायी वस्तु स्वलक्षणस्याभावाय जो राशि सान्त होती है उसमें अनन्तपन नही बन सकता है, क्योकि सान्तको अनन्त माननेमें विराध आता है। प्रश्न- जिस राशिका निरन्तर व्यय चालू है,' परन्तु इसमें आय नही होती है तो उसको अनन्तपन कैसे बन सकता है " उत्तर- नहीं, क्योकि यदि सव्यय और निराय राशिको भी अनन्त न माना जावे तो एकको भी अनन्त माननेका प्रसग आ जायेगा । व्यय होते हुए भी अनन्तका क्षय नही होता. यह एकान्त नियम है, इसलिए जिसके संख्यातवे और अस ख्यातवे भागका व्यय हो रहा है ऐसी राशिका, अनन्तकी अपेक्षा उसकी दो तीन आदि सख्यात राशिके व्यय होनेसे भी क्षय नहीं होता है, ऐसा स्वीकार किया है। प्रश्न- अर्ध पुदगल परिवर्तन रूप काल अनन्त होते हुए भी उसका क्षय देखा जाता है। इसलिए भव्य राशिके क्षय न होनेमें जो अनन्त रूप हेतु दिया है वह व्यभिचरित हो जाता है ' उत्तर- नहीं, क्योंकि भिन्न-भिन्न कारणो से अनन्तपनको प्राप्त भव्य राशि और अर्धपुद्गल परिवर्तन काल वास्तव में अनन्त रूप नहीं है। आगे इसीका स्पष्टीकरण करते हैं। परिवर्तनका क्षय सहित होते हुए भी इस लिए अनन्त है कि छद्मस्थ जीवोके द्वारा उसका अन्त नहीं पाया जाता है। किन्तु केवलज्ञान वास्तवमें अनन्त है । अथवा अनन्तको विषय करनेवाला होनेसे वह अनन्त है। जोव राशि तो उसका सरख्यातने भाग रूप राशिके क्षय हो जानेपर भी निर्मूल नाश नहीं होनेसे, अनन्त है । अथवा ऊपर जो भव्य राशिके क्षय होनेमें अनन्त रूप हेतु दे आये है, उसमें छद्मस्थ जीवोके द्वारा अनन्तकी उपलब्धि नहीं होती है, इस अपेक्षा के बिना ही, यह विशेषण लगा देने से अने कान्तिक दोष नही आता है। दूसरे व्यय सहित अनन्तके सर्वथा क्षय मान लेनेपर कालका भी सर्वथा क्षय हो जायेगा, क्योंकि व्यय सहित होनेके प्रति दोनों समान है। प्रश्न- यदि ऐसा ही मान लिया जाये तो क्या हानि है । उत्तर-नहीं, क्योंकि ऐसा माननेपर कालकी समस्त पर्यायोके क्षय हो जानेसे दूसरे द्रव्योंकी स्वलक्षण रूप पर्यायोंका भी अभाव हो जायेगा। और इसलिए समस्त वस्तुओं के अभाव की आपति आ जायेगी (६.४ / १.५-४/३३८/४) । स.म./२६/रतो, २ में उधृत २२२/५ अध्यन्नातिरिक्त युज्यते परिमाणयद वस्तुयपरिमेये तु नून तेषामसंभव ॥२॥ अपरिमित वस्तुका न कभी अन्त होता है, न कभी घटती है और न समाप्त होती है। द्र. सं /टी./३७/१५७ यथा भावितकाले समयानां क्रमेण गच्छतां यद्यपि भाविकालसमयराशेः स्तोकस्वं भवति तथाप्यवसानं नामित तथा मुक्ति गच्छतां जीवानां यद्यपि जीवराशे' स्तोक्त्व भवति जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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