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________________ उदय ३९० ६ कर्म प्रकृतियों की उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ ७. नाम कर्मको उदय स्थान प्ररूपणाएँ क्रम सकेत | अर्थ विवरण १. युगपत् उदय आने योग्य विकल्प तथा सकेत 1६ अंग/२ अगोपाग तीन अगोपांग तथा छह संहननमेंक्रम सकेत - अर्थ विवरण आदि २ से अन्यतम अगोपाग तथा अन्यतम एक संहनन इस प्रकार इन प्रकृ१५/१२ बोदयी १२ । तेजस, कार्माण, वर्ण, गन्ध, रस, तियोमे-से युगपत् २ का ही उदय स्पर्श, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ होता है अगुरुलघु, निर्माण -१२ आतप/२ आतपादि २ २ | यु/ युगल ८ चारगति, पाँच जाति, त्रस-स्थावर आतप-उद्योत, प्रशस्त-अप्रशस्त बादर सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त,सु भग विहायो., इन दो युगलोकी चार दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश अयश प्रकृतियोमें-से प्रत्येक युगल की (इन ८ युगलोकी २१ प्रकृतियो में अन्यतम एक-एक करके युगपत् २ से प्रत्येक युगलकी अन्यतम एक ही का उदय होय |८ उच्छ/२ उच्छवासादि एक करके युगपत ८ही उदय मे उच्छवास, सुस्वर, दु'स्वर, इनतीन आती है) प्रकृतियोमें-से एक उच्छवास तथा -२१ ३ आनु/१ आनुपूर्वी १ | विग्रह गतिमें चारो आनुपूर्वियोमें अगली दोमें अन्यतम एक करके से अन्यतम एक ही उदयमें आती युगपत् २ ही का उदय होय -३ तीर्थ।१ तीर्थ कर/१ तीर्थर प्रकृति किसीको उदय आये किसी को नहीं ४ | श/३ शरीर आदि- औदा., वक्रि. आहा, यह तीन शरीर ६ संस्थान, प्रत्येक-साधाको तीन ६७ रण इन ३ समूहोकी ११ प्रकृतियोंमें-से प्रत्येक समूहकी अन्यतम एक नोट-वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श इनके २० भेदोका ग्रहण न करके केवल मूल एक करके युगपत ३ का ही उदय ४ का ही ग्रहण है, अत १६ तो ये कम हुई। बन्धन ५ व संघात ५ ये होता है १० स्व-स्व शरीरोमे गर्भित हो गयौं, अत: १० ये कम हुई। नाम कर्म| उपधातादि १ उपघात व परघात इन दोनोमे-से की कुल ६३ प्रकृतियों मे-से ये २६ कम कर देनेपर कुल उदय योग्य अन्यतम एकका ही उदय आवे-२ । ५ ६७ रहती है, जिनके उदयके उपरोक्त विकल्प है। - २. नाम कर्मके कुछ स्थान व भंग प्रमाण-(प सं /मा ५/१७-१८०), (ध. १५/८६-८७); (गो.क ५६३-५६७/७६५-८०२), (गो क./मू व टी ६०३-६०५/८०६-८११); (पं स/सं १९१२ १६८) सकेत-दे. उदय ६/७/१, कार्मण काल आदि-दे उदय ६/७/६ कुल स्थान--१२ विकल्प प्रति । प्रति विवरण स्थान | स्थान भगोंका विवरण प्रकृति भंग स्वामित्व प्रकृतियोका विवरण सामान्य समुद्घात केवलीके प्रतर २०११ ध्र व/१२+ यू./८ (मनु गति, पंचें जाति- त्रस, व लोकपूर्ण का कार्माण काल बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय. यश) =२० चारों गतियों सम्बन्धी वक्र विग्रह- २१|४| धब/१२+यु/+ आनुपूर्वी/१(अन्यतम आनु) | ४ानपूर्व में अन्यतम गतिका कार्माण काल = २१ तीर्थकर केवलीका कार्माण काल २१ १, ध्रुव/१२+ यु+तीर्थ/१ एकेन्द्रिय अपर्याप्तके मिश्र शरीर-२४ ११ धव/१२+यु/+श/३ + उ०/१ का काल एकेन्द्रियका शरीर पर्याप्ति काल २५ उपरोक्त २४+ परघात -२५ आहारक शरीरका मिश्र काल ध व/१२+ यु/८+श/३+उपघात+अग/१ (आहा.)=२५ देव नारकके शरीरोका मिश्र काल २५|| ध्र व/१२ + य /+श/३ + उपघात अंग/१ (वै कि )-२५ ८ | २६ | | एकेन्द्रियका शरीर पर्याप्ति काल २६|२ ध्र व/१२+यु./+श/३+ उपघात+ परघात आतप उद्योतमें +आतप या उद्योत अन्यतम एकेन्द्रियका उच्छ्वासपर्याप्ति काल २६/११ धब/१२+यु.//+श/३+उपघात+ परघात+उच्छवास जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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