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________________ इतिहास ३३५ ९. पौराणिक राज्यवंश सुरेन्द्रमन्यु १० पौराणिक राज्यवश १ सामान्य वंश म प्र १६/२५८-२६४ भ. ऋषभदेवने हरि, अकम्पन, कश्यप और सामप्रभ नामक महाक्षत्रियो को बुलाकर उनको महामण्डलेश्वर बनाया। तदनन्तर सोमप्रभ राजा भगगनसे कुरुराज नाम पाकर कुरुवंशका शिरोमणि हुआ, हरि भगवान्से हरिकान्त नाम पाकर हरिवशको अल कृत करने लगा, क्योकि वह हरि पराक्रममें इन्द्र अथवा सिहके समान पराक्रमी था। अकम्पन भी भगवान् से श्रीधर नाम प्राप्तकर नाथवंशका नायक हुआ । कश्यप भगवान् से मघवा नाम प्राप्त कर उग्रवशका मुख्य हुआ 1 उस समय भगवान्ने मनुष्योंको इक्षुका रससंग्रह करने का उपदेश दिया था, इसलिए जगत के लोग उन्हे इवाकु कहने लगे। २ इक्ष्वाकुवंश सर्व प्रथम भगवान् आदिनाथमे ग्रह वश प्रारम्भ हुआ। पीछे इसकी दो शाखाएँ हो गयी एक सूर्यवंश दूसरी चन्द्रवश । (ह पु १३/ ३३) सूर्यवशकी शाखा भरतचक्रवर्तीके पुत्र अकीतिसे प्रारम्भ हुई, क्योकि अर्क नाम सूर्यका है । (प पु ४) इस सूर्यवशका नाम ही सर्वत्र इक्ष्वाकु वंश प्रसिद्ध है । (प प्र.१२६१) चन्द्रव शकी शाखा बाहुबली के पुत्र सोमयशसे प्रारम्भ हुई (ह पु. १३/१६) । इसीका नाम सोमवंश भी है, क्योकि सोम और चन्द्र एकार्थवाची है (पपु ११२) और भो देखे सामान्य राज्य वश । इसकी वशावली निम्न प्रकार है(ह पु १३/१-१५) (प. पु५/४-६) भगवान् आदिनाथ भरत बाहुबली अर्ककी ति सोमयश (सोमवशका प्रवर्तक) स्मितयश, बल, मुबल, महाबल, अतिबल, अमृतबल, सुभदसागर, भद्र, रवितेज, शशि, प्रभूततेज, तेजस्वी, तपन, प्रतापवान, अनिवाय, सुबोय, उदितपराक्रम, महेन्द्र विक्रम, सूय, इन्द्रदयुम्न, महेन्द्रजित, प्रभु, विभु, अविध्वस-बीतभी, वृषभध्वज, गुरूडाडू, मृगाडू आदि अनेक राजा अपने-अपने पुत्रोका राज्य देकर मुक्ति गये। इस प्रकार (१४०००००) चौदह लाख राजा बराबर इस वशसे मोक्ष गये, तत्पश्चात् एक अहमिन्द्र पदको प्राप्त हुआ, फिर अस्सी राजा मोक्षको गये, परन्तु इनके बीच में एक-एक राजा इन्द्र पद को प्राप्त होता रहा। पपु.लोकन भगवान आदिनाथका सु समाप्त होनेपर जब धार्मिक क्रिपाअ में शिथिलता आने लगी, तब अनेका राजाओके व्यतीत हानेपर अयोध्या नगरी में एक धरनीधर नामक राजा हुआ (५७-५६) त्रिदशजय (६०) अज्रया (२१/७७) पुरन्धर (२१/७७) कीर्तिधर (२१/१४०) सुकौशन, हिरण्यगर्भ, नघुष, (२१/१६४) (२२/१०१) (२२/११२) सौदाम, सिंहरथ, ब्रह्मरथ, चतुर्मुख, हेमरथ, शतरथ, मान्धाता, (२२/१३१) (२२/१४५) वीरसेन, प्रतिमन्यु, दीप्ति, कमलबन्धु प्रताप, रविमन्यु, बसन्ततिलक कुबेरदत्त , कीतिमान्, कुन्युभक्ति, शरभरथ, द्विरदरथ, सिहदमन हिरण्यकशिपु, पंजस्थल, ककुत्थ, रघु,। (अनुमानत ये ही रघुवंशके प्रर्वतक हों अत दे -रघुवश । २२/१५३-१५८) । ३ उग्रवंश पु१/३३ सर्वप्रथम इक्ष्वाकुवश उत्पन्न हुआ। उससे सूर्यवंश व चन्द्रव शकी तथा उसी समय कुरुवश और उग्रवश की उत्पत्ति हुई। ह पु २२/५१-५३ जिस समय भगवान् आदिनाथ भरतको राज्य देकर दीक्षित हुए उसी समय चार हजार भोजन शीय तथा उग्रवशीय आदि राजा भी तपमें स्थित हुए। पीछे चलकर तप भ्रष्ट हो गये। उन भ्रष्ट राजाओंमेंसे नाम विनमि है। दे -'सामान्य राज्यवश'। नाट- इस प्रकार इस वशका केवल नामालेख मात्र मिलता है। ४ ऋषिवंश ५ पु.५/२ "चन्द्रवश (सोमवंश) को ही ऋषिवश कहा है। विशेष दे --'सोमवंश' ५ कुरुवंश म पु २०/१११ "ऋषभ भगवान्को हस्तिनापुर में सर्वप्रथम आहारदान करके दान तीर्थको प्रवृत्ति करने वाला राजा श्रेयान कुरुवशी थे। अत उनकी सर्व सन्तति भी कुरुव शीय है । और भी दे -- 'सामान्य राज्यवश' नाट-हरिवश पुराण व महापुराण दोनो में इसकी वंशावली दी गयी है। पर दोनो में अन्तर है। इसलिए दोनो की बशावली दी जाती है। प्रथम वंशावली-ह पु ४५/६-३८) श्रेयान् व सोमप्रभ, जयकुमार, कुरु, कुरु चन्द्र, शुभकर, धृतिकर, करोडो राजाओ पश्चात... तथा अनेक सागर काल व्यतीत होनेपर, धृतिदेव, धृतिकर, गङ्गदेव, धृतिमित्र, धृतिक्षेम. सुनत, बात, मन्दर, श्रीचन्द्र, सुप्रतिष्ठ आदि कराडो राजा धृतपद्म, धृतेन्द्र, धृतवीर्य, प्रतिष्ठित आदि सैक्डो राजा धृतिदृष्टि, धृतिकर, प्रीतिकर, आदि हुए भ्रमरपाष, हरिधोष, हरिध्वज, मूर्यघोष, सुतेजस, पृथु, इभवाहन आदि राजा हुए विजय महाराज, जयराज इनके पश्चात इसी वशमे चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार, सुकुमार, वरकुमार, विश्व, वैश्वानर, विश्व के तु, वृहध्वज. तदनन्तर विश्वसेन, १६ वे तीर्थकर शान्तिनाथ, इनके पश्चात् नारायण, नरहरि, प्रशान्ति, शान्तिवर्धन, शान्तिचन्द्र, शशाङ्काडू, कुरु इसी वशमें सूर्य भगवान्कुन्थनाथ (ये तीर्थकर व चक्रवर्ती थे) तदनन्तर अनेक राजाओंके पश्चात् सुदर्शन, अरहनाथ (सप्तम चक्रवर्ती व १८वे तीर्थंकर) सुचारु, चारु, चारूरूप. चारुपद्म, अनेक राजाओके पश्चात् पद्ममाल, सुभौम, पद्मरथ, महापद्म (चक्रवर्ती), विष्णु व पद्म, पद्म, पद्मदेव, कुलकीति, कीर्ति, सुकीर्ति, कीर्ति, वसुकीर्ति, वासुकि, वासव, वमु, सुवसु, श्री सु, वसुन्धर, वसुरथ, इन्द्रवीर्य, चित्रविचित्र, वीर्य, विचित्र, विचित्रवीय, चित्ररथ, महारथ, धूतरथ, वृषानन्त, वृषध्वज, श्रीवत, व्रतधर्मा, धृत,धारण, महासर, प्रतिसर, शर, पराशर, शरद्वीप, द्वोप, द्वीपायन, सुशान्ति, शान्तिप्रभ, शान्तिषेण, शान्तनु, धृतव्यास, धृतधर्मा, धृतोदय, धृततेज, धृतयश, धृतमान, धृत, जितशत्रु (६०) विजयसागर (७४) भगवान् अजितनाथ (६३) सगर (७४) जह, आदि साठ हजार पुत्र (२४४) भगीरथ (२८४) प पु/सर्ग/रन मुनिसुवननाय भगवान्का अन्तराल शुरू होनेपर अयोध्या नामक विशाल नगरी में विजय नामक बडा राजा हुआ। (२१/७३-७४) इसके भो महागुणवान् ‘सुरेन्द्रमन्यु' नामक पुत्र हुआ। (२१-७५) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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