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________________ इन्द्रावतार ३०० इद्रिय-विषय-सूची सार यह भण्डिकुल (वर्मवश) के थे। इनका पुत्र चक्रायुध था। इसका राज्य कन्नौजमे ले कर मारवाड़ तक फैला हुआ था। इंद्रावतार-गर्भाधयादि क्रियाओमे से एक--दे संस्कार २।। इद्रिय-शरोरवारी जोवको जानने के साधन रूप स्पर्शनादि पाँच इन्द्रियाँ होती है। मन को ईषत् इन्द्रिय स्वीकार किया गया है। ऊपर दिखाई देनेनाली तो बाह्य इन्द्रिया है। इन्हे द्रव्येन्द्रिय कहते है। इनमें भी चपटलादि तो उस उस इन्द्रियके उपकरण होनेके कारण उपकरण कहलाते है, और अन्दरमे रहने वाला ऑख की व आत्म प्रदेशीकी रचना विशेष निवृत्ति इन्द्रिय कहताती है । क्योकि बास्तबगे जाननेका काम इन्दी इन्द्रिपसे होता है उपकरणोसे नहीं। परन्तु इनके पीछे रहनेवाले जीवके ज्ञानका क्षयोपशम व उपयोग भावन्द्रिय है, जो साक्षात जाननेका साधन है। उपरोक्त छहो इन्द्रियोमें चश्नु और मन अपने विषयको स्पर्श किये बिना ही जानती है, इसलिए अप्राप्यकारी है। शेष इन्द्रियाँ प्राध्यकारी है। सयमकी अपेक्षा जिह्वा व उपस्थ ये दो इन्द्रियाँ अत्यन्त प्रबल है और इसलिए योगीजन इनका पूर्णतया निरोप करते है। १भेद व लक्षण तथा तत्सम्बन्धी शंका समाधान १ इन्द्रिय सामान्यका लक्षण २ इन्द्रिय सामान्यके भेद ३ द्रव्येन्द्रियके उत्तर भेद ४ भावेन्द्रियके उत्तर भेद * लब्धि व उपयोग इन्द्रिय -दे. वह वह नाम * इन्द्रिय व मन जीतनेका उपाय -दे संयम २ ५ निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियोके लक्षण ६ भावेन्द्रिय सामान्यका लक्षण ७ पाँचों इन्द्रियोके लक्षण ८ उपयोगको इन्द्रिय कैसे कह सकते है ९ चल रूप आत्मप्रदेशोमे इन्द्रियपना कैसे घटितहोता है २ इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन १ इन्द्रियोमे प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपनेका निर्देश * चार इन्द्रियाँ प्राप्त व अप्राप्त सब विषयोको ग्रहण करती है - दे.अवग्रह ३/५ २ चक्षुको अप्राप्यकारी कैसे कहते हो ३ श्रोत्रको भी अप्राप्यकारी क्यो नही मानते ४ स्पर्शनादि सभी इन्द्रियोमे भी कथचिन अप्राप्यकारी पने सम्बन्धी ५ फिर प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपनेसे क्या प्रयोजन ३ इन्द्रिय-निर्देश १ भावेन्द्रिय ही वास्तविक इन्द्रिय है २ भावेन्द्रियको ही इन्द्रिय मानते हो तो उपयोग शून्य दशामे या संशयादि दशामे जीव अनिन्द्रिय हो जायेगा ३ भावेन्द्रिय होनेपर ही द्रव्येन्द्रिय होती है ४ द्रव्येन्द्रियोंका आकार ५ इन्द्रियोंकी अवगाहना ६ इन्द्रियोका द्रव्य व क्षेत्रकी अपेक्षा विषय ग्रहण ७ इन्द्रियोके विषयका काम व भोग रूप विभाजन ८ इन्द्रियोके विषयो सम्बन्धी दृष्टिभेद ९ ज्ञानके अर्थमे चक्षुका निर्देश * मन व इन्द्रियोमे अन्तर सम्बन्धी -दे मन ३ * इन्द्रिय व इन्द्रिय प्राणमे अन्तर -दे प्राण * इन्द्रियकषाय व क्रियारूप आस्रवोमे अन्तर -दे क्रिया * इन्द्रियोमे उपस्थ व जिह्वा इन्द्रियकी प्रधानता -दे संयम २ ४ इन्द्रिय मार्गणा व गुणस्थान निर्देश १ इन्द्रिय मार्गणाकी अपेक्षा जीवोके भेद * दो चार इन्द्रियवाले विकलेन्द्रिय; और पंचेन्द्रिय सकलेन्द्रिय कहलाते है -दे त्रस २ एकेन्द्रियादि जीवोके लक्षण ३ एकेन्द्रियसे पंचेन्द्रिय पर्यन्त इन्द्रियोका स्वामित्व * एकेन्द्रियादि जीवोंके भेद -दे जीव समास * एकेन्द्रियादि जीवोकी अवगाहना - दे अवगाहना २ ४ एकेन्द्रिय आदिकोमे गुणस्थानोंका स्वामित्व * सयोग व अयोग केवलीको पंचेन्द्रिय कहने सम्बन्धी -दे केवली ५. ५ जीव अनिन्द्रिय कैसे हो सकता है * इन्द्रियोके स्वामित्व सम्बन्धी गुणस्थान, जीवसमास मार्गणा स्थानादि २० प्ररूपणाएं -दे. सत् * इन्द्रिय सम्बन्धी सत् (स्वामित्व),संख्या,क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ -दे. वह वह नाम * इन्द्रिय मार्गणामे आयके अनुसार हो व्यय होनेका नियम -दे मार्गणा * इन्द्रिय मार्गणामे सम्भव कर्मोका बन्ध उदय सत्व - दे. वह वह नाम * कौन-कौन जीव मरकर कहाँ-कहाँ उत्पन्न हो और क्या क्या गुण उत्पन्न करे -दे जन्म ६ * इन्द्रिय मार्गणामे भावेन्द्रिय इष्ट है -दे इन्द्रिय ३ ५ एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय निर्देश * अस व स्थावर -दे वह वह नाम * एकेन्द्रियोंमे जीवत्वकी सिद्धि -३. स्थावर * एकेन्द्रियोंका लोकमे अवस्थान -दे स्थावर * एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय नियमसे सम्मछिम ही होते है -दे.समूच्र्छन * एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रियोमे अंगोपाग,संस्थान, संहनन व दुस्वर सम्बन्धी नियम -दे. उदय जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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