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________________ मागम २२६ सूचीसूची - विधि है--शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ व भावार्थ, शब्दका १ वास्तवमे भाव श्रुत ही ज्ञान है द्रव्यश्रुत ज्ञान नही अर्थ यद्यपि क्षेत्र कालादिके अनुसार बदल जाता है पर भावार्थ वही २ भावका ग्रहण ही आगम है रहता है, इसोसे शब्द बदल जाने पर भी आगम अनादि कहा जाता है। आगम भी प्रमाण स्वीकार किया गया है क्योकि पक्षपात रहित * श्रुतज्ञानके अंग पूर्वादि भेदोका परिचय कीतराग गुरुओं द्वारा प्रतिपादित होनेसे पूर्वापर विरोधसे रहित है। --दे. श्रुतज्ञान III शब्द रचनाकी अपेक्षा यद्यपि वह पौरुषेय है पर अनादिगत भावकी ३ द्रव्य श्रुतको ज्ञान कहनेका कारण अपेक्षा अपौरुषेय है।आगमको अधिकतररचना सूत्रों में होती है क्योंकि सूत्रों द्वारा बहुत अधिक अर्थ थोड़े शब्दोमें ही किया जाना सम्भव ४ द्रव्य श्रुतके भेदादि जाननेका प्रयोजन है। पीछेसे अल्पबुद्धियोके लिए आचार्योंने उन सूत्रोंकी टीकाएँ ५ आगमको श्रुतज्ञान कहना उपचार है रची है। वे ही टोकाएँ भी उन्हीं मूल सूत्रोके भावका प्रतिपादन * निश्चय व्यवहार सम्यग्ज्ञान -दे. ज्ञान IV करनेके कारण प्रामाणिक हैं। ३ आगमका अर्थ करनेकी विधि - १ पाँच प्रकार अर्थ करनेका विधान १ आगम सामान्य निर्देश: * शब्दार्थ -दे. आगम/४ १ आगम सामान्यका लक्षण २ मतार्थ करनेका कारण २ आगमाभासका लक्षण ३ नय निक्षेपार्थ करनेकी विधि ३ नोआगमका लक्षण * सूक्ष्मादि पदार्थ केवल आगम प्रमाणसे जाने जाते * आगम व नोआगमादि द्रव्य भाव निक्षेप तथा स्थित है, वे तर्कका विषय नही -दे. न्याय जित आदि द्रव्य निक्षेप -दे.निक्षेप -दे आगम १/११ * आगमकी अनन्तता ४ आगमार्थ करनेकी विधि १. पूर्वापर मिलान पूर्वक * आगमके नन्दा भद्रा आदि भेद -दे. वाचना २. परम्पराका ध्यान रखकर ४ शब्द या आगम प्रमाणका लक्षण ३ शब्द का नहीं भाव का ग्रहण करना चाहिए * आगमकी परीक्षामें अनुभवकी प्रधानता -दे, अनुभव ५ शब्द प्रमाणका श्रुतज्ञानमे अन्तर्भाव ५ भावार्थ करनेकी विधि ६ आगम अनादि है ६ आगममे व्याकरणकी प्रधानता। ७ आगम गणधरादि गुरु परम्परा से आगत है ७ आगममे व्याकरणकी गौणता आगम ज्ञानके अतिचार ८ अर्थ समझने सम्बन्धी कुछ विशेष नियम ९ श्रुतके अतिचार ९ विरोधी बाते आनेपर दोनोंका संग्रह कर लें १० द्रव्य श्रुतके अपुनरुक्त अक्षर १० व्याख्यानकी अपेक्षा सूत्र वचन प्रमाण होता है ११ श्रुतका बहुत कम भाग लिखने में आया है ११ यथार्थका निर्णय हो जानेपर भूल सुधार लेनी चाहिए १२ आगमकी बहुत सी बातें नष्ट हो चुकी है ४ शब्दार्थ सम्बन्धी विषय:१३ आगमके विस्तारका कारण १ शब्दमे अर्थ प्रतिपादनकी योग्यता व शंका १४ बागमके विच्छेद सम्बन्धी भविष्यवाणी २ भिन्न-भिन्न शब्दोंके भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं * आगमके चारों अनुयोगों सम्बन्धी -दे अनुयोग ३ जितने शब्द है उतने वाच्य पदार्थ भी है * मोक्षमार्गमे आगम ज्ञानका स्थान -दे स्वाध्याय ४ अर्थ व शब्दमे वाच्य वाचक भाव कैसे हो सकता है * आगम परम्पराकी समयानुक्रमिक सारणी ५ शब्द अल्प है और अर्थ अनन्त है। -दे. इतिहास/७ * आगम ज्ञानमे विनयका स्थान -दे. विनयार ६ अर्थ प्रतिपादनकी अपेक्षा शब्दमे प्रमाण व नयपना * आगमके आदान प्रदानमे पात्र अपात्रका विचार ७ शब्दका अर्थ देश कालानुसार करना चाहिए -दे. उपदेश/३ ८ भिन्न क्षेत्र कालादिमे शब्दका अर्थ भिन्न भी होता है * आगमके पठन पाठन सम्बन्धी - दे. स्वाध्याय १. कालकी अपेक्षा। * पठित ज्ञानके संस्कार साथ जाते है - संस्कार २ शास्त्रों की अपेक्षा। ३. क्षेत्रको अपेक्षा। २ द्रव्य भाव आगम ज्ञान निर्देश व समन्वय: ९ शब्दार्थकी गौणता सम्बन्धी उदाहरण * आगमके ज्ञानमे सम्यकदर्शनका स्थान दे. ज्ञान III/२ ५ आगमकी प्रमाणिकतामें हेतु :* आगम ज्ञानमे चारित्रका स्थान -दे. चारित्र ५ १ आगमकी प्रामाणिकताका निर्देश जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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