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________________ अवग्रह १८५ २. अवग्रह निर्देश १ भेद व लक्षण ६ सम्यक्त्व व मिथ्यात्व कृत चिह्नभेद सम्बन्धी मतभेद । ७ सर्वाग क्षयोपशमके सद्भावमे करण-चिह्नोकी क्या १ अवधिज्ञान सामान्यका लक्षण आवश्यकता? २ अवधिज्ञानके भेद प्रभेद (सम्यक व मिथ्या, गुण ८ सर्वांगकी बजाय एकदेशमे ही क्षयोपशम मान ले तो ? प्रत्यय, देशावधि-परमावधि आदि) * करण चिह्नोके अधीन होनेके कारण अवधिज्ञान परोक्ष ३ सम्यक् मिथ्या अवधिका लक्षण क्यो न हो जायेगा? -दे ऊपर क्रम ८ ४ गुण प्रत्यय व भवप्रत्ययका लक्षण ९ करणचिह्नोमे भी ज्ञानोत्पत्तिका कारण क्षयोपशम ही है ५ देशावधि आदि भेदोके लक्षण ६ अवधिज्ञानके भेदों सम्बन्धी विचार ६ वद्धमान हीयमान आदि भेदोके लक्षण १ भव प्रत्यय व गुण प्रत्ययमे अन्तर २ अवधिज्ञान निर्देश २ क्या भव प्रत्ययमे ज्ञानावरणका क्षयोपशम नही है ? १ अवधिज्ञानमे अवधि पदका सार्थक्य ३ भव प्रत्यय है तो भवके प्रथम समय ही उत्पन्न क्यों २ प्रत्येक समय नया ज्ञान उत्पन्न होता है नही होता? ३ अवधि व मति श्रुतज्ञानमे अन्तर ४ देव नारकी सम्यग्दृष्टियोके अवधिज्ञानको भवप्रत्यय कहें ४ अवधि व मन पर्यय ज्ञानमे अन्तर या गुणप्रत्यय? ५ अवधिकी अपेक्षा मनःपर्यय विशुद्ध कैसे है ? ५ सभी सम्यग्दृष्टि आदिकोंको गुणप्रत्यय ज्ञान उत्पन्न क्यों मोक्षमार्गमे अवधि व मन पर्ययका कोई मूल्य नही नही होता? ७ पचमकालमे अवधि व मन पर्यय सम्भव नही ६ भव व गुण प्रत्ययमे देशावधि आदि विकल्प ८ पचमकालमे भी कदाचित् अवधि सम्भव है ७ परमावधिमे कथचित देशावधिपना ९ मिथ्यादृष्टिका अवधिज्ञान विभंग कहलाता है ८ देशावधि आदि भेदोमे वर्तमान आदि अथवा प्रतिपाती * अवधिज्ञान निसर्गज होता है -दे अधिगम आदि विकल्प * अवधिज्ञान क्षायोपशमिक कैसे है --दे मतिज्ञान २/ ४ ९ देशावधि आदि भेदोंमे चारित्रादि सम्बन्धी विशेषताएँ ३ अवधि व मनःपर्ययकी कथंचित् प्रत्यक्षता परोक्षता , ७ अवधिज्ञानका स्वामित्व * अवधि व मन पर्ययकी देश प्रत्यक्षता -दे प्रत्यक्ष १/३ . १ सामान्यरूपसे अवधिज्ञान चारो गतियोमे सम्भव है १ अवधि व मन.पर्यय कर्म प्रकृतियोको प्रत्यक्ष जानते हैं २ भव प्रत्यय केवल देव नारकियों व तीर्थंकरोंको होता है २ दोनो कर्मबद्ध जीवको प्रत्यक्ष जानते है ३ गुणप्रत्यय केवल मनुष्य और तिर्यचोमे ही होता है ३ अवधि मन पर्ययकी कथंचित् परोक्षता ४ भवप्रत्यय ज्ञान सम्यग्दष्टि व मिथ्यादष्टि दोनोको होता है ४ दोनोंकी प्रत्यक्षता परोक्षताका समन्वय ५ गुणप्रत्यय अवधिज्ञान केवल सम्यग्दृष्टियोको ही होता है ५ अवधि व मतिज्ञानकी प्रत्यक्षतामे अन्तर ६ उत्कृष्ट देशावधि मनुष्योमे तथा जघन्य मनुष्य व तिर्यंच ४ अवधिज्ञानमें इन्द्रियों व मनके निमित्तका सद्धाव व दोनोमे सम्भव है पर देव व नारकियोमे नही असद्भाव ७ उत्कृष्ट देशावधि उत्कृष्ट सयतोको ही होता है पर जघन्य १ अवधि ज्ञानमे कथंचित् मनका सद्भाव ज्ञान असंयत सम्यग्दृष्टि आदिकोको भी सम्भव है २ अवधिज्ञानमे मनके निमित्तका अभाव ८ मिथ्यादृष्टियोंमे भी अवधिज्ञानकी सम्भावना * बिना इन्द्रियोके प्रत्यक्षज्ञान कैसे हो ?--दे, प्रत्यक्ष २/४ ९ परमावधि व सर्वावधि चरमशरीरी सयतोमे ही होता है ५ अवधि ज्ञानके उत्पत्ति-स्थान व करण चिह्न विचार १० अपर्याप्तावस्थामे अवधिज्ञान सम्भव है पर विभंग नही १ देशावधि गण प्रत्यय ज्ञानकरण चिह्नोसे उत्पन्न होता ११ संज्ञी संमूर्छनोमे अवधिज्ञानकी सम्भावना व असम्भावना है और शेष सब सर्वांग से १२ अपर्याप्तावस्थामे अवधिज्ञानके सद्भाव और विभंगके २ करण चिह्नोके आकार अभाव सम्बन्धी शंका ३ चिह्नोके आकार नियत नही है ८ अवधिज्ञानकी विषय सीमा ४ शरीरमे शुभ व अशुभ चिह्नोका प्रमाण व अवस्थान १ द्रव्यकी अपेक्षा रूपीको ही जानता है ५ सम्यक्त्व व मिथ्यात्वके कारणकरण-चिह्नोंमे परिवर्तन २ द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा अनन्तको नही जानता। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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