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________________ अल्पबहुत्व १७१ {३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ कौन कर्म का अनुभाग अल्पबहुत्व कौन कर्म का अनुभाग अल्पबहुत्वे का विशेष हीन अन्यतमका ही द्रव्य आता है अत' अल्प बहुत्व नहीं होता अधिक विशेष होन अनन्तगुणा निद्रा देवायु दर्शनावरण का भाग आहारक शरीर निद्रानिद्रा ... " नोट-इस सम्बन्धी आदेश प्ररूपणा के लिए देखो म ब./पु. ५/६४४५ प्रचलाप्रचला , " .. ४५०/पृ. २३५-२३६) स्त्यानगृद्धि " ११ एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र मे सर्व व देशघाती ३. वेदनीय के द्रव्य मेंअनुभागके विभाग की अपेक्षा साता का भाग (गो.क./म् १६७/पृ. २५६) असाता सर्न घाती भाग । सन द्रव्य/अनन्त देश घाती ., | शेष बहु भाग ४. मोहनीय के द्रव्य में अनन्तानुबन्धी चतुष्क का भाग १२. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्न मे निषेक सामान्य के | अपत्याख्यान विभाग की अपेक्षा प्रत्याख्यान संज्वलन (ध /पु १२/४,२,७,६३/३६-४०) हास्य चरम स्थिति में स्तोक रति प्रथम " " असं गुणे अरति अप्रथम व अचरम स्थितियों में शोक अप्रथम में विशेषाधिक भय अचरम में जुगुप्सा सब स्थितियो में स्खी वेद पुरुष वेद १३. एक समय प्रबद्ध मे अष्ट कर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र | नपुसक वेद विभाग की अपेक्षा .. आयु के द्रव्य मैं - १. स्वस्थानप्ररूपणा चारों आयु में से मुल प्रकृति विभाग-वि.स./प्रा.४/४४६-४६७) (ध. १५/३५); (गो.क/ मू १९२२६६/२२५) ६. नाम के द्रव्य मेंआयु कर्म का भाग गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, नाम विशेषाधिक निर्माण, बन्धन, संघात, सस्थान, गोत्र ऊपर तुल्य संहनन, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, ज्ञानावरण विशेषाधिक आनुपूर्वी, अगुरुलधु, उपघात, दर्शनावरण ऊपर तुल्य परघात, आतप, उद्योत, अन्तराय , " " उच्छवास, विहायोगति, प्रत्येक मोहनीय विशेषाधिक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, वेदनीय बादर, पर्याप्ति, स्थिर, आदेय, उत्तर प्रकृति विभाग स्वस्थान अपेक्षा. यश कीर्ति, तीर्थकर १. ज्ञानावरण के द्रव्य मेंमति ज्ञानावरण ७. गोत्र के द्रव्य मेंअधिक विशेष हीन ऊँच गोत्र का भाग अबधि , नीच , मनापर्यय केवल ८. अन्तराय के द्रव्य में२. दर्शनावरण के प्रव्य में दानान्तराय का भाग चक्षु दर्शनावरण का अधिक उलाभ . अक्षच विशेष हीन भोग , अवधि उपभोग. केवल . , . अन्यतमका ही द्रव्य आता है अत: अक्पबहुत्व नहीं स्तोक इसी क्रम से प्रत्येक में अपने-अपने से पूर्व की अपेक्षा विशेषहीन भाग जानना शुभाशुभ युगलों में अपबहुत्व नहीं है क्योंकि अन्यतम का द्रव्य आता है। का भाग अन्यतमका ही द्रव्य आता है अत अल्पबहुत्व नहीं स्तोक विशेषाधिक वीर्य , जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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