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________________ अल्पबहुत्व ३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएं सूत्र मार्गणा व समास | स्थान | अल्पबहुत्व मार्गणा व समास अपमहत्व ३. स्थिति बन्धके निषेकोंकी अपेक्षा २. स्थिति बन्धमे जघन्योत्कृष्ट स्थानोंकी अपेक्षा (ष खं. ११/४,२६/सू, ६५-१००/२२५-२३७) ६५ सुक्ष्म साम्पराय संयतके अन्तिम समयवर्ती ६६ एकेन्द्रिय बा. प.] (ष ख. ११/४,२-६/सू.१०२-१११/२३८-२५३) १०२| सर्व जीव समास मिध्यादृष्टि : से | आठों कर्मों की अपेक्षा १११ प्रथम समयमें निक्षिप्त अधिक विशेष हीन ततीय " " पंचें. सज्ञी प. सम्यग्दृष्टि-- आयु कर्म को अपेक्षा उपरोक्तवत नोट-विशेष देखो (नं. १४/८/१०,१२) । सर्वत: स्तोक अस. गुणा गुणकार-पत्य/असं. विशेषाधिक विशेष = पत्य/अस द्वितीय . . P ४. मोहनीय कर्मक स्थिति सत्त्व स्थानोंकी अपेक्षा (क.पा. ४/३,२२/६२८-६३६/३२९) द्वय १२८ २५ गुणा विशेषाधिक विशेष = पन्य असं. सर्वत. स्तोक विशेषाधिक ऊपर तुल्य विशेषाधिक जीन्द्रिय प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान क्रोध,मान, । माया, लोभके सत्कर्म स्थान २२६ स्त्री वेद के सत्कर्म स्थान नपु. , , हास्यादि ६ नोकषायों के स्थिति सत्कर्म स्थान पुरुष वेद के सत्कर्म स्थान ६३२ सज्वलन क्रोध ,, , . ६३३ , मान . .. " र माया , " .. लोभ . . " अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चतुष्क के स्थिति सत्कर्म स्थान मिथ्यात्व के सत्कर्म स्थान सम्यक्त्व प्रकृतिके . . ६३६ सम्यग्मिध्यारव , " " ८२ चतुरिन्द्रिय et पञ्चन्द्रिय असंज्ञी विशेषाधिक विशेष-पत्य/असं, an १० संयत सामान्य सं. गुणा गुणकार-सं. समय ५. बन्ध समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा संयतासयत ६३ अस यत सम्यग्दृष्टि ६४ . अर्थ-बन्ध समुत्पत्तिक स्थान-कर्मका जितना अनुभाग माँघा गया (क. पा.५/४,२२/१५७२/३३८) अप. स्वामी अल्पमहत्व १७ पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि हम उपरोक्त सयमाभिमुख चरम समयवर्ती मिथ्याष्टि । स्तोक सर्व विशुद्ध पंचे संज्ञी प का ज. अनु.स्थाम सर्व विशुद्ध पंचे. असंज्ञी अ.ज. अनु. स्थान अनन्तगुणा १००१ ॥ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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