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________________ अल्पबहुत्व १५३ ३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएं सूत्र मार्गणा गुण स्थान अल्पबहुत्व | कारण व विशेष __ मार्गणा अल्पबहुत्व ३६४। अक्षपक अनुपशमक | ७ । सं. गुणे ।सं. मनुष्यमात्र दुगुने असं गुणे | गुणकार-पत्य/असं. तिर्यंचोंकी अपेक्षा ww स.गणे गुणकार-आ/असं ३ ३ कालकी अपेक्षा उत्सर्पिणी सिद्ध । स्तोक अवसर्पिणी, विशेषाधिक अनुत्सपिण्यनवसर्पिणी (विदेहक्षेत्र) । स. गुणे प्रत्युत्पन्ननयापेक्षया एक समय में सिद्धि होती है। । अत अल्पबहुत्वका अभाव है। ४. अन्तरकी अपेक्षा निरन्तर होनेवालों की अपेक्षाआठ शमय अन्तर से |स्तोक सात " " " ३६६ गुणकार-आ/असं. अस गुणे अनन्तगुणे ३७० ३७१ उपरोक्तमे सम्यकत्व मूलोघवत् .. चार तीन . " । स्तोक ३७२ उपशमकोमें स्तोक सम्यक्त्व सं. गुणे ३७३| चारित्र उप. स्तोककुल जीव ५४ ३७४ क्षप | दुगुणे । १०८ ३ अनाहारककी ओघ व आदेश प्ररूपणा (ष ख ५/१८/सू ३७५-३८२) ३७५ सयोगी । १३ । स्तोक । समुद्धात गत केवली (६० जीव) ३७६, अयोगी १४ | सं गुणे | संचय (५६८ जीव) ३७७ विग्रह गतिवाले २ प/अस/गुणे तिथंचोकी अपेक्षा ४ आ./असं गुणे विग्रह गति प्राप्त ३७६ अनन्तगुणे विग्रह गति प्राप्त ३८० अस यतो में सम्यक्त्व उप । स्तोक द्वितीयोपशम वाले ही अनाहारक होते है ३८१ क्षा सं गुणे गुणकार-सं, समय ३८२ | वे. अस गुणे - पल्य/असं ३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ १ सिद्धोंकी अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा (रा.वा १०/३/१४/६४७/२७) ३७८ मागणा अल्पबहुत्व सान्तर होने वालोंकी अपेक्षाछ मास अन्तर से एक समय , सं गुणे यव मध्य , अधस्तन यव मध्य अन्तर से उपरिम , ,, | विशेषाधिक ५. गतिकी अपेक्षा प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा सिद्ध गति में ही सिद्धि है अत: अल्पबहुत्व नहीं है अनन्तर गति अपेक्षा केवल मनुष्य गतिसे ही सिद्धि है अत' अल्पबहुत्व नहीं है एकान्तर गति अपेक्षातिर्यग्गति से स्तोक मनुष्य गति से सं. गुणा नरक " " देव , , ६. वेदानुयोगकी अपेक्षा प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा अवेद भावमें ही सिद्धि है अत. अल्पबहुत्व नहीं है भूत नयापेक्षयानपुसक वेद से स्तोक खी वेद से स. गुणे पुरुष वेद से ७. तीर्थकर व सामान्य केवलीकी अपेक्षा तीर्थकर सिद्ध | स्तोक सामान्य सिद्ध | सं.गुणे ८ चारित्रकी अपेक्षा प्रत्युत्पन्न नयापेक्षया निर्विकल्प चारित्रसे सिद्धि होने से अल्पबहुत्व नहीं है अनन्तर चारित्रापेक्षा यथारख्यातसे ही होनेसे अम्प बहुख नही है एकान्तर चारित्रापेक्षापंच चारित्र सिद्ध स्तोक चार , स गुणे (परिहार विशुद्धि रहित) स्तोक १.संहरण सिद्ध व जन्मसिद्धकी अपेक्षा सहरण सिद्ध | स्तोक जन्म सिद्ध | स गुणे २. क्षेत्रकी अपेक्षा-(केवल संहरण सिद्धोमे) ऊर्ध्व लोक सिद्ध अधोलीक सिद्ध स गुणे तिर्यग्लोक सा. तिर्यग्लोक विशेष :समुद्र सा सिद्ध द्वीप सा सिद्ध स. गुणे लवण समुद्र सिद्ध कालोद,,, सं गुणे जम्बूद्वीप धातकी पुष्करार्ध स्तौक स्तोक जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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