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________________ wwwwww से जले हुए अगुरु वृक्षों के धूप-धूम्रोंसे सारा मैदान सुगंधमय हो रहा था । इस प्रकार पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर- चारों दिशाओं में विजय प्राप्त कर, अपनी इष्ट-सिद्धि की पूर्णाहूति हो जाने से, बादशाह अपनी राज्यधानी सिकरी की ओर रवाना हुआ । समुद्र के तरंगों के समान अपने सैन्य द्वारा सारे भूमंडल को व्याप्त करने वाले राजाधिराज अकबर शाहने सिकरी शहर में जब प्रवेश किया तब इस की समृद्धि का इतना बोजा पृथ्वी पर जमा हुआ कि जिसे ( शेषनाग भी उठाने में असमर्थ होने लगा । 'मैंने इस स्थान में रह कर समग्र पृथ्वीमंडल को फतह किया है अपने स्वाधीन किया है' ऐसा विचार कर बादशाह ने अपनी मातृभाषा में उस नगर का " फतहपुर " ऐसा नया नाम स्थापन किया । - अनेक देश के राजाओं की भेंट की हुईं राजपुत्रियों के साथ समग्र प्रदेश की पृथ्वी का स्वामी बन कर बादशाह आनंदपूर्वक अपने वैभव का सुख भोगने लगा । छत्र और चामर धारण किये हुए, सिंहासन पर बैठे हुए और प्रसन्न नेत्रों से सभी की ओर देखते हुए इस बादशाह को आज्ञाधीन राजाओं ने आ आ कर प्रणाम किया । खानखाना आदि बडे बडे अमीर और उमराव, जिस तरह गुरु के सामने शिष्य खड़े रहते हैं वैसे, बादशाह के आगे खडे रहने लगे । Jain Education International 8 अकबर के सुकृत्यों का वर्णन । 9-69-693-6 I कल्पवृक्ष के समान याचकों के प्रति अति उदार ऐसे इस बादशाह ने, दूरसे आए हुए राजाओं के उपहारों को सिर्फ प्रसन्न - दृष्टि से देख कर ही, इसारे द्वारा, पास में बैठे हुए लोकों को दे दिये । औरों के धन की वांछा करने वाले दूसरे राजा जिस कर के न लेने से पृथ्वी को कर्ज वाली मानते हैं उसी महान् कर का त्याग कर इस बादशाह ने नीतिमानों में अग्रपद प्राप्त किया । शिक्षा पाने योग्य दुष्ट मनुष्यों को छोड़ कर शेष सभी नगर निवासियों पर बन्धु की तरह प्रेम रखने वाले और निर्लोभवृत्ति वाले इस बादशाह ने स्वप्न में भी किसी ६४ SK For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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