SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ auniamadan जिस के दुष्ट आचरण और विपरीत प्रदर्शन से, हरडे के कारण जैसे जल का मधुर गुण व्यक्त होता है वैसे, अस्पष्ट भी सुजनों के गुण प्रकट हो जाते हैं। रा सुन्दर संपत्ति-शाली और सुख का स्थान तया जो जगत् में प्रसिद्ध है, पक पक कर झाड के शिरे से नीचे गिरी हुई खजूर के ढेरों से जहां के गाँवो के । आस पास की जमीन चलने में भी कठिनता देने वाली है, जहां पर पतले कान, । उंचे खंधे, वांके मुंह और रोषान्ध मन वाले केवल घोडे होते हैं- परंतु राजा नहीं, इन्द्र के उच्चैःश्रवा नामक घोडे के जैसे जहां के उत्तम जाति वाले, घोडे। राजाओं को विजय-लक्ष्मी संपादन करने में एक अनुपम साधन हैं और धान्यों की तरह जहां पर जगह जगह अखोड आदि उत्तम प्रकार का मेवा उत्पन्न होता । ।। है वैसा एक रसाल जमीन वाला खुरासान नाम का सुन्दर देश है। इस खुरासान देश में, अन्य नगरों में अग्रपद पाने योग्य काबुल नाम का नगर है, जिस की दिवारें बडी उंची उंची है। जहां की उच्चस्तनवाली स्त्रिये सदा पडदे में रहनी वाली होने से कभी सूर्य का दर्शन नहीं करती। नगर के समीप की विशाल भूमी बागीचों के वृक्षों की छाया से सदा ढंकी रहती है। जहां पर यथा समय ही मेघ वर्षता है, बिजली चमकती है और वृक्ष फलते हैं। प्रचंड-शासनधारी शासकों को देख कर जहां पर सब दिशाओं से आ आ कर।। लक्ष्मी ने निवास किया है। जहां पर, स्नेह (तैल) का नाश केवल दीप में, अस्त होने वाला उदय केवल सूर्य में और आपद्वाली संपद् केवल चंद्र में देखी। || जाती है, परंतु मनुष्यों में नहीं। _इस काबुल नगर में, मुगलों का स्वामी बाबर नामका बादशाह था जो प्रसन्न- हृदय वाला और समस्त शत्रुओं का संहार करने वाला था। वैरियों के दल को बालने वाला उस का तेजोराशि, शत्रुओं की स्त्रियों के लोचनों के अश्रु-प्रवाह को दहन करने के लिये वडवानल के समान था । उस के धनुष्य पर डोरी खींचते ही शत्रुओं की उत्कट भ्रकुटियें नीची हो गई थी और उस पर बाण चढाते ही उन की लडने की हिंमत छूट गई थी। उस बाबर के एक हुमायु। नाम का पुत्र हुआ जिस को गर्भ में धारण करते समय उस की माता, मुक्ताफल को धारण करनेवाली शुक्ति के समान, शोभती थी। क्रम से यह पुत्र रत्न तेज से, उम्र से और गुण से, ग्रीष्मकाल के सूर्य समान, शत्रुओं के लिये दुस्सह होने लगा। परस्पर मानों ईर्ष्या कर के ही सभी कलायें इस को प्राप्त हुई। DAANANAMIKARANARASIMALARIALISHALAWAL MAHARASHAMAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAmandarmanandamLLAIIANAMASHAALAAAAAAAAAAARAKHALIL Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy