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________________ MALHANA प्रथम के दो परिशिष्ट, जिसमें दो नई अप्रकाशित कृतियां छापी गई है। चूंकि ।। इस कृपारसकोश के कर्ता शान्तिचन्द्र वाचक है, इसलिए उन्हीं की एक अप्रकट व अज्ञात 'हीरविजयसूरि स्वाध्याय'' नामक प्राकृत गाथाबद्ध लघुकृति यहां दी गई है। इस कृति की मूल प्रति मांगरोल संघ के भंडार में हैं। दूसरे परिशिष्ट में 'अकबर सहस्र नाममाला' नामक कृति दी गई है। सहस्र नामविषयक रचनाएं देवताओं व देवियों के बारे में तो अनेक उपलब्ध है ही। किन्तु कोई गृहस्थ या राजाकी सहस्रनामावली मिलें, यह मेरे ख्याल में शायद प्रथम ही है। इस कृतिकी एकमात्र प्रति बडौदा-श्रीहंसविजयजी शास्त्रसंग्रह में है। अशुद्ध तो बहुत है, फिर भी रसिकता की दृष्टि से इसका विशेष मूल्य है ।। । यद्यपि इस कृति में कर्ता का नामोल्लेख कहीं भी नहीं है, तो भी आन्तरपरीक्षण से स्पष्ट है कि कोई जैन मुनि की ही यह रचना है। आशा है कि संशोधित-संवर्धित इस पुनर्मुद्रणमें विद्वानों को रस पडेगा। इस ग्रन्थ के पुनर्मुद्रण की संमति व अपने संग्रह की एकमात्र किताब उपयोगार्थ देने के लिए भावनगरस्थित जैन आत्मानंद सभा के कार्यवाहकों का आभारी हूं। पुस्तक-संशोधनार्थ अपने स्वाधीन भंडारों की हस्तप्रतियां की झेरोक्ष कोपियां भेजने के लिये, श्री आत्मारामजी जैन ज्ञानमंदिर-बडौदा, श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडार-पाटन एवं श्री तपगच्छ जैन संघ भंडार-मांगरोल 1 के कार्यवाहकों का मैं विशेषरूप से ऋणी हूं। पुस्तक का सुचारु मुद्रणकार्य सम्हालने वाले श्री पारिजात शाह (पारिजात प्रिन्टरी)का भी स्मरण होता है। अंत में, जगद्गुरु श्री की पावन स्मृतिमें किया गया यह प्रकाशन सकल श्रीसंघ के करकमलों में समर्पण । HAIAINIKALTIMARINIVAN SAMANARTHATANTRATIME - शीलचन्द्रविजय HTTMMITAL D AAAAAAAAAVATW Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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