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________________ HALALADAALANAHARAalaamalayaMaNaIAMM जीव-जन्तुओं को सुख मिले, जिससे सब लोग अमन चैन में रह कर परमात्मा की आराधना में लगे रहें । इससे पहले शुभचिन्तक तपस्वी जयचन्द्र (जिनचंद्र) सूरि खरतर (गच्छ) हमारी सेवा में रहता था। जब उस की। | भगवद्-भक्ति प्रकट हुई तब हमने उस को अपनी बडी बादशाही की मेहरबानियों मे मिला लिया। उसने प्रार्थना की इस से पहले हीरविजयसूरि ने सेवा में उपस्थित होने का गौरव प्राप्त किया था और हरसाल १२ दिन माँगे थे, जिन में बादशाही मुल्कों में कोई जीव मारा न जावे और कोई आदमी किसी पक्षी, मछली और उन जैसे जीवों को कष्ट न दे। उस की प्रार्थना स्वीकार हो गई थी। अब मैं भी आशा करता हूं कि एक सप्ताह का और वैसा ही हुक्म इस शुभचिन्तक के वास्ते हो जाय । इस लिये हमने अपनी आम दया से हुक्म फ़रमा दिया कि आषाढ शुक्लपक्ष की नवमी से पूर्णमासी तक साल में कोई। जीव मारा न जाय और न कोई आदमी किसी जानवर को सतावे । असल बात तो यह है कि जब परमेश्वर ने आदमी के बास्ते भाँति भाँति के पदार्थ उपजाये हैं तब वह कभी किसी जानवर को दुख न दे और अपने पेट को पशुओं का मरघट न बनावे । परन्तु कुछ हेतुओं से अगले बुद्धिमानों ने वैसी तजबीज़ की है। इन दिनों आचार्य जिनसिंह उर्फ मानसिंह ने अर्ज कराई कि पहले जो ऊपर लिखे अनुसार हुक्म हुआ था वह खो गया है । इस लिये हमने उस फ़रमान के अनुसार नया फ़रमान इनायत किया है । चाहिए कि जैसा लिख दिया है वैसा ही इस आज्ञा का पालन किया जाय । इस विषय में बहुत बड़ी कोशीश और ताकीद समझ कर इस के नियमों में उलट फेर न होने दें। ता.३१ खुरदाद इलाही, सन् ४९ । हज़रत बादशाह के पास रहने वाले दोलतखाँ के हुक्म पहुंचाने से, उमदा अमीर और सहकारी राय मनोहर की चौकी और ख्वाज़ा लालचंद के वाकिया (समाचार) लिखने की बारी में लिखा गया। ीरविजयसूरि को इनायत किये गये १२ दिनों का स्वीकार अकबर के कितने ही उत्तराधिकारियों ने भी किया था। ऐसा बहुत से ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा जाना जाता है परंतु उन के यहां पर देने की जगह नहीं । राजपूताना और । मालवे के देशी राजा महाराजाओं ने भी अकबर का अनुकरण किया था और अपने राज्य में पर्युषणों के दिनो में जीवहिंसा की निषेधात्मक उद्घोषणा MAALIMANAKAMAlastikuldNAAJLLAHALALLAHABAALHAAR HUMANIA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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