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________________ RADIMANAWRATHIMATI जिस में बादशाह का जन्म हुआ है, उस के सारे दिनों में तथा हिन्दुओं को खुश करने के लिये कितनेक और दिनों में भी, जीव हिंसा के निषेध का फरमान किया गया। यह फरमान सारे राज्य में किया गया था और जो कोई | इस के विरुद्ध आचरण करे उसे गर्दन मार ने का हुक्म दिया गया था।" इस में जो "हिन्दुओं को खुश करने के लिये" लिखा गया है वहां हिन्द शब्द से जैन ही समझने चाहिए। क्यों कि जैनलोक ही इस बात का (जीव वध का) निषेध कराने में सदा प्रयत्न किया करते हैं। वे आज भी भारतीय राजा महाराजाओं। के तथा दयालु युरोपीय अधिकारियों के पास इस जीवदया के विषय में हजारों। अर्जियें भेजते रहते हैं और लाखों रूपये प्रति वर्ष खर्च किया करते हैं । _ अकबर ने जो फरमान जगद्गुरु हीरविजयसूरि को दिये थे उनमें से कितने ही आज भी विद्यमान हैं। इन फरमानों में से दो के चित्र इस पुस्तक के साथ लगाये गये हैं। पहला चित्र उस फरमान का है जिस में बादशाह ने पर्युषण के | १२ दिनों में जीववध न करने का हुक्म किया है । ऊपर पृष्ठ १४ पर जिन ६ फरमानों का उल्लेख किया गया है उन्हीं में का यह दूसरे नंबर का-सूबे मालवे का- फरमान है । यह हाल में उज्जैन में रक्खा हुआ है। इस की लंबाई दो फुट और चौडाई १० इंच है । मोटे और मजबूत कपडे पर सुन्ने की शाही से लिखा हुआ है । संरक्षक की बेकदरी के कारण बहुत स्थानों पर जीर्ण-शीर्ण हो कर। कुछ फट भी गया है तो भी मतलब सब अच्छी तरह पढ लिया जा सकता है। । इस फरमान का अनुवाद मेजर जनरल सर जॉन मालकम (Malcolm) ने। अपनी "मेमायर ऑव सेंट्रल इन्डिया (Memons (?) of Central India)" नामक पुस्तक की दूसरी जिल्द के पृष्ठ १३५-६ पर दिया है । पाठकों के ज्ञानार्थ हम, साहब के कथन के साथ उक्त अनुवाद को यहां पर यथावत् उद्धृत किये देते हैं - An application was made to me to prevent the slaying of animals during the Putchoossur, or twelve days which they hold sacred; and the original Firman of Akber (carefully kept by their high priest at Oojein) was sent for my perusal. The i following is a literal translation of this curious document. "In THE NAME OF GOD, GOD IS GREAT." "Firman of the Emperor Julalo-deen Mahomed Akber, Shah, Padsha, Ghazee." HINDI MAINTIMATIHATIMAHANISTRATIMATETA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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