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________________ ADAMThanmun RANAMAMImay AmalKALAMARRIMILAAMAlamkAILI सभ्य बडे चकित हुए। बादशाह ने इन्हें भी 'खुशफहेम' की उपाधि से भूषित किया। यह जिक्र सं.१६५० का है। इधर जगद्गुरु संवत् १६४९ के शीतकाल में पट्टन से शत्रंजय- तीर्थकी। यात्रा के लिये चले । पट्टन, राधनपुर, पालणपुर, अहमदावाद, खंभात आदि अनेक नगरों के हजारों श्रावक श्राविकायें और सेंकडों शिष्य सूरिजी के साथ हुए । सूरिजी के इस संघ की खबरें सब जगह पहुंची जिस से मालवा, मेवाड, |मारवाड, दक्षिण, बंगाल, कच्छ और सिंध आदि सभी प्रदेशों के जैन-संघ तीर्थराज की यात्रा और जगद्गुरु के दर्शन के लिये शत्रुजय की ओर रवाना हुए। फाल्गुन मास के आस पास सूरिजी शत्रुजय पहुंचे । इस समय कोई छोटे बडे २०० संघ यहां पर एकत्र हुए जिनमें कोई ३ लाख मनुष्य थे। सूरिजी ने अपनी । इस यात्रा का हाल पहले ही भानुचंद्र उपाध्याय के पास पहुंचा दिया था जिस से उन्हों ने अकबर के पास जा कर, उस समय राजकीय नियमानुसार प्रत्येक यात्री के पास से जो मस्तक-कर लिया जाता था उसे माफ करने का फरमानपत्र लिख देने की अर्ज की। बादशाह ने तुरन्त वैसा फरमान लिख कर सूरिजी के पास भिजवा दिया जिस से वे सब लाखों यात्री बिना कोडी खर्च किये तीर्थाधिराज की दुर्लभ्य यात्रा कर सके । इस के पहले, इस तीर्थ की यात्रा करनेवाले प्रति मनुष्य को कभी कभी तो एक एक सुन्ना-महोर, (कर के रूप में) | देने पर भी, इच्छित तया यात्रा नहीं हो सकती थी ! हीरसौभाग्य के कर्ता । लिखते हैं कि प्राचीनजैननरपतिवारक इव निष्करे विमलशैले। विदधुर्विधिना यात्रां तत्र मनुष्याः परोलक्षाः ॥ ___ यहां पर सूरि महाराज ने, १ शाह तेजपाल, २ शाह रामजी, ३-जसु । ठक्कर, ४ शाह कुंवरजी और ५ शेठ मूला शाह; इन ५ धनिकों के बनाये हुए। । विशाल और उन्नत जिनमंदिरों की महान् महोत्सव के साथ आनंददायिनी प्रतिष्ठायें कीं । समग्र जैन प्रजा इस समय आनंद और हर्ष के समुद्र में । सुखपूर्वक सफर करने लगी। AADARSAAMAHAKAALJAMINAAMAN AMIKI MAMINATIALAMITRAAMAm सनामामामामालामालमVITTETTPIT कृपारसकोश' के साथ संबंध रखने वाले इतिहास का संक्षेप में उल्लेख हो चुका । इस उल्लेख से, प्रस्तुत पुस्तक किसने, क्यों और कब बनाया IT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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