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________________ mamal MalaianKAMAMMALHAASAMARTHulam NS इस तरह परस्पर आलाप-संलाप होने के बाद अकबर अकेले सूरिजी को एकान्त- महल में ले गया और अन्यान्य सभ्यों को, शांतिचन्द्र आदि मुनिवरों के साथ विद्वद्गोष्ठी करने की आज्ञा दे गया । उस एकान्त - भवन में सूरिमहाराज ने अकबर को अनेक प्रकार का धर्मोपदेश दिया । ईश्वर, जगत्, सुगुरु और सद्धर्म के विषय में भिन्न भिन्न दृष्टि से सूरिजी ने अपने विचार । प्रदर्शित किये जिस से अकबर के दिल में बहुत कुछ संतोष हुआ। अभी तक तो वह सूरिजी के चारित्र पर ही मुग्ध हो रहा था परन्तु अब तो उन की विद्वत्ता का भी वह क़ायल हुआ । धर्म संबंधी बातचीत हो चूकने पर, अकबर ने सूरिजी की परीक्षा करने के लिये पूछा कि “महाराज ! आप सर्वशास्त्र के पारगामी हैं- आप से कोई बात छीपी नहीं है। इस लिये कृपा कर कहिए कि| मेरी जन्म कुंडलि में, मीन राशि पर जो शनैश्चर आया हुआ है, उस का मुझे क्या फल होगा।' सूरिजी बोलेः - "पृथ्वीश ! यह फलाफल बताने का काम | गृहस्थों का है। जिन्हें अपनी आजीविका चलानी होती है वे इन बातों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। हमें तो केवल मोक्ष मार्ग के ज्ञान की अभिलाषा रहती है जिस से वह जिन शास्त्रों से प्राप्त हो सकता हों। उसी के विषय में हमारा श्रवण, । मनन और कथन हुआ करता है ।" अकबर ने अनेक वार इस प्रश्न का उच्चारण किया परंतु सूरिजी इसी एक उत्तर के सिवा और कुछ भी अक्षर नहीं बोले । सायंकाल का समय हो आया देख कर बादशाह और मुनीश्वर अपने । स्थान से ऊठे और सभा मंडप में पहुंचे। इधर भी शेख अबुल-फजल और अन्यान्य विद्वान् सूरिजी के शिष्यों के साथ अनेक प्रकार के वार्ता-विनोद और धर्म-विवाद कर आनन्दित हो रहे थे । नृपति और मुनिपति के आते ही सब मौन हुए । बादशाह ने अबुल-फजल को लक्ष्य कर सूरिजी की विद्वत्ता, निःस्पृहता और पवित्रता की बहुत बहुत सराहना की। शेखने भी सूरिमहाराज के शिष्यों की बडी तारिफ की। सभा में बादशाह ने सूरिजी के शिष्यों की संख्या पूछी LEARN * पुरेऽनयीवावनिमानुपेयिवान् य एष मीने तरणेस्तनूरुहः । स मत्सरीवापकरिष्यति प्रभो क्षितेः पतीनामुत नीवृतां किमु ।। * गुरु जंगौ ज्योतिषिका विदन्त्यदो न धार्मिकादन्यदवैमि वाङ्मयात् । यतःप्रवृत्तिर्गृहमेधिनामियं न मुक्तिमार्गे पथिकीबभूकुषाम् ।। हीरसौभाग्य काव्य, सर्ग १४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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