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________________ माणसाकमान । क्या करें ?” खां, सूरिजी के इन कठोर नियमों का हाल सुन कर चकित हुआ और बहुत बहुत उन की प्रशंसा करने लगा। एते निःस्पृहपुङ्गवा यतिवराः श्रीमत्खुदारूपिणो दृश्यन्तेऽत्र न चेदृशाः क्षितितले दृष्टा विशिष्टाः क्व चित् । एवं तेन तदीयमृद्गलभटैः सम्यक् स्तवं प्रापिता वाद्याडम्बरपूर्वकं निजगृहात् साध्वाश्रमे प्रेषिताः ॥ जगद्गुरु काव्य, १३९ । ये साधु महोदय निःस्पृहियों- त्यागियों में शिरोमणि और साक्षात् खुदा की। मूर्ति है । इन के जैसा त्यागी महात्मा आज तक कहीं नहीं देखा । इस तरह का विचार कर खां ने, अपने सैनिकों के साथ, शाही बाजों के बजते हुए, सूरिमहाराज को, स्वस्थान पर पहुंचाये । । कुछ दिन अहमदाबाद में ठहर कर, जो दो आदमी अकबर का फरमान ले कर आये थे उन्हीं के साथ सूरिजी ने फतहपुर की तर्फ प्रयाण किया । रास्ते में सबसे बड़ा शहर पहले पट्टन आया । यहां पर सूरिजी के बडे सहाध्यायी और प्रखर पंडित उपाध्याय श्रीधर्मसागरजी तथा प्रधान पट्टधर श्रीविजयसेनसूरि आदि विशाल साधुसमुदाय सूरिजी के दर्शनार्थ उपस्थित हुआ। एक श्राविकाने इस शुभ प्रसंग पर हजारों रुपये खर्च कर बडा भारी उत्सव किया और कुछ जिनप्रतिमायें सूरिजी के हाथ से प्रतिष्ठित कराईं। पट्टन में केवल ७ रोज ठहर कर सूरिमहाराज आगे चले । धर्मसागरजी उपाध्याय को । संघ की संभाल रखने के लिये यहां पर रक्खे गये । विजयसेनसूरि, सिद्धपुर तक सूरिजी को पहुंचाने को गये और बाद में वापस लौटे । सिद्धपुर में, इस कृपारसकोश के कर्ता शांतिचन्द्र पंडित सूरिजी की सेवा में हाजर हुए जिन्हें. अतियोग्य समझ कर सूरिजीने अपने साथ में लिये । महोपाध्याय श्री। विमलहर्षगणि, जो गंधार ही से सूरिजी के साथ थे, उन को अपने पहले अकबर से मिलने के लिये जल्दी के साथ, आगे रवाना किये । सूरिजी धीरे धीरे चलते हुए सरोतरा ग्राम में पहुंचे। यहां का ठाकुर अर्जुन, जो बडा डाकू mammarAmARMATIMATIVE * सूरिराजोऽथ संप्रस्थितस्तत्पुरान्मेवडाभ्यां पुरोगामुकाभ्यां युतः। - हीरसौभाग्य, १२-१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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