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________________ प्रस्तावना 'हिन्दी-गुजराती धातुकोश' डा. रघुवीर चौधरी का शोधप्रबन्ध है । गुजराती भाषा में साहित्यसर्जन तथा समीक्षा के क्षेत्र में देढ़ दशक तक उल्लेखनीय योगदान देने के बाद प्रो. चौधरी ने यह शोधकार्य हाथ में लिया । और डा. हरिवल्लभ भायाणी जैसे समर्थ भाषाविद् का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ । फलतः यह शोधप्रबंध पीएच.डी. के लिए प्रस्तुत प्रबंधों की सीमाओं से मुक्त है। इसमें कहीं पिष्टपेषण या अनावश्यक विस्तार नहीं । डा. भायाणी ने गुजरात विश्वविद्यालय से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण किया और श्री ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में मानाई सेवाएँ देना शुरू किया इसके साथ गुजराती तथा अन्य भाषाओं के लेखक तथा प्राध्यापक डा. भायाणी से मिलने के निमित्त भी हमारे यहाँ आने लगे। प्रो. चौधरी प्रस्तुत शोधकार्य के मार्गदर्शन के लिए तो आते ही थे, हमारी व्याख्यानमालाओं तथा गोष्ठियों में इनकी सक्रिय उपस्थिति सदा सूचित करती रही कि वे इस संस्था के प्रति कैसा गहरा लगाव रखते हैं। अतः जब शोधप्रबंध के प्रकाशन का समय आया तो पंडित दलसुखभाई मालवणियाजी और मैंने इसमें रुचि दिखाई । प्रो. चौधरी की विद्याप्रीति और निष्ठा के हम गवाह हैं । इसलिए भी प्रस्तुत शोधप्रबंध के प्रकाशन के अवसर पर हमें नैसर्गिक आनंद का अनुभव हो रहा है। 'हिन्दी-गुजराती धातुकोश' के प्रकाशन से तुलनात्मक भाषाविज्ञान तथा कोशविज्ञान के अध्येताओं को एक महत्त्वपूर्ण संदर्भग्रंथ सुलभ होगा। श्री. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर ने ऐतिहासिक भाषाशास्त्र को भी अपना कार्यक्षेत्र माना है । प्राकृत-अपभ्रंश ग्रंथों के संपादन तथा प्रकाशन के क्षेत्र में संस्था ने विशिष्ट योगदान दिया है। ____ मैं जानता हूँ कि प्रो. चौधरी ने कोशविज्ञान तथा ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषाविज्ञान की शोधपद्धतियों के अनुशासन में अपने आपको बाँध कर कुछ समय के लिए सर्जनात्मक लेखन छोड़ दिया था। इनके संनिष्ठ पुरुषार्थ को डा. भायाणीजी के द्वारा सुयोग्य दिशा प्राप्त हुई । हिन्दी-गुजराती धातुओं का यह पहला तुलनात्मक कोश है । शोधकर्ता ने पूर्वकार्य के अध्ययन के अंतर्गत पूर्वसूरियों के निष्कर्षों को समादर के साथ देखा है और युक्तिसंगत मूल्यांकन किया है। धातुकोश ग्रंथ का प्रमुख एवं समृद्ध अंग है । टिप्पणियों में भी परिश्रम लक्षित होगा ही। अंत में विश्लेषण और वर्गीकरण के अंतर्गत आधुनिक भाषाविज्ञान की मान्य शोधपद्धतियों का आलंबन लिया गया है। लेक्सिको स्टेटिस्टिक्स के द्वारा निकाले गए निष्कर्ष बहुत संक्षेप में हिन्दी-गुजराती धातुओं की तुलनात्मक झाँकी करवाते हैं। ग्रंथ के परिशिष्ट भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रो. चौधरी का प्रस्तुत शोधकार्य विषय के विद्वानों के लिए एक ध्यानाह संदर्भ सिद्ध होगा। एक मूल्यवान ग्रंथ हमारी ला. द. ग्रंथमाला के अंतर्गत प्रकाशित करने का अवसर देने के लिए मैं डा. रघुवीर चौधरी का अनुगृहीत हूँ। श्री. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद-380009. २ मार्च 1982 नगीन जी. शाह निदेशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016001
Book TitleHindi Gujarati Dhatukosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary, Dictionary, & Grammar
File Size15 MB
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