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________________ हिन्दी-गुजराती धातुकोश यह भेद अर्थगत अधिक है और सविशेष तो वाक्यरचना पर अवलम्बित है. केवल इन धातुओं के शब्दरूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि सभी प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं परन्तु सभी सकर्मक क्रियाएँ प्रेरणार्थक हों ही ऐसा नहीं है. गुजराती में 'कापवु' सकर्मक रूप है और 'कपावु' इसका कर्माणि रूप. हिन्दी में उनके लिए क्रमशः 'काटना' और 'कटना' रूप हैं. अर्थ को ध्यान में रखते हुए वर्गीकरण करें तो गुजराती 'काप' तथा हिन्दी काट' धातुओं को अग्रता देनी चाहिए. परंतु हिन्दी 'कट' को प्राथमिकता न देने का शास्त्रीय आधार क्या है ? कहीं-कहीं अनिर्णय की स्थिति में या कहिए कि गलती से बचने के लिए एकाधिक धातु-रूप दिए हैं और जैसा कि अभी बताया, जहाँ ध्वनिगत अंतर है वहाँ संदर्भ के लिए विभिन्न रूप दिए हैं. ७. धातु : स्वरान्त या व्यंजनान्त? __ डा. धीरेन्द्र वर्मा लिखते हैं : “क्रिया के 'ना' युक्त साधारण रूप से–'ना' हटा देने पर हिन्दी धातु निकल आती है, जेसे खाना, चलना, देखना आदि में खा, देख, चल धातु हैं. "88 ___ इसके अनुसार गुजराती क्रिया के 'वु' युक्त साधारण रूप से-वु' हटा देने पर गुजराती धातु निकल आएगी. उपयुक्त क्रियाएँ गुजराती में भी समान रूप से प्राप्त होती हैं : खावु, देखवू, चालवु. इनसे-'वु' हटा देने से या इनका द्वितीय पुरुष एकवचन आज्ञार्थ रूप पसंद करने से खा, देख, चल रूप प्राप्त होंगे. इनमें 'खा' तो आकारान्त होने के कारण स्पष्ट रूप से स्वरान्त है परन्तु 'देख' या 'चल'-'चाल' को स्वरान्त माने या व्यंजनान्त ? ___ उच्चारण की दृष्टि से तो 'करना' या 'कर' रूप ही सही हैं. 'कर' लिखने पर भी हम पढ़ते हैं 'कर'. नियमों की दृष्टि से भी धातुरूपों को हलन्त लिखने में ही शास्त्रीयता का निर्वाह होगा. परन्तु कामताप्रसाद गुरु ने धातुओं को हलन्त नहीं माना. शायद इन्होंने हिन्दी धातुओं के ध्वनि-रूपों के बारे में नहीं सोचा. जैसा कि डा. मुरलीधर श्रीवास्तव कहते हैं : हिन्दी में जब ध्वन्यात्मक पाठ के लिए फोनेटिक रीडर बनेंगे, तो पढ़ना और चल्ना लिखना आवश्यक होगा." ___ सन 1885 में प्रकाशित भाषा प्रभाकर' के लेखक बाबू रामचरण सिंह ने तो धातुओं को 'ना' प्रत्यय-सहित लिखना आवश्यक समझा था : हाँ, केवल जा, आ, गिर आदि धातु हैं पर उनकी धातुता का चिह्नरूप एक दूसरा 'ना' प्रत्यय ( संस्कृत के इक् स्तिप् की भाँति ) लगायें तो किसी भाँति उनका लिखना ठीक हो सकता है. 4. ___बाबू साहब ने व्याकरणिक आवश्यकताओं के अनुसार धातु को देखा है इसलिए उनके सारे तर्क दूसरी दिशा में आगे बढ़ जाते हैं. वे 'ना' जैसा प्रत्यय जोड़ने की चिन्ता में 'गिर' धातु स्वरान्त है या व्यंजनान्त-इसकी चर्चा नहीं कर पाते. पं. किशोरीदास वाजपेयी हिन्दी की सभी धातुओं को स्वरान्त मानते हैं : "संस्कृत की सभी धातुएँ प्राकृत-पद्धति से हिन्दी में आकर स्वरान्त हो गई हैं. हिन्दी में एक भी धातु व्यंजनान्त नहीं है. 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016001
Book TitleHindi Gujarati Dhatukosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary, Dictionary, & Grammar
File Size15 MB
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