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________________ १२ पूर्वकार्य का अध्ययन 200 धातुओं का है जो केवल वैदिक संस्कृत तक सीमित है, दूसरा वर्ग 150 से कुछ कम धातुओं का है जो केवल लौकिक साहित्य में मिलती हैं. तीसरे वर्ग में लगभग 500 धातुएँ आती हैं जो वैदिक तथा लौकिक दोनों ही साहित्य में प्रयुक्त हुई हैं." 33 ___ डा. भोलानाथ तिवारी के निर्देशन में डा. कृष्णगोपाल रस्तोगी ने 'हिन्दी क्रियाओं का अर्थपरक अध्ययन' किया है, जिसमें 772 धातुओं के क्रियारूप पसंद किये गए हैं. गुजराती के विद्वान श्री के. का. शास्त्री ने इनमें से कुछ बातों को दोहराते हुए कुछ नई जानकारी दी है: ___ "संस्कृत भाषामां बधा मळी 2200 थीये वधु धातु पाणिनिना धातुपाठमां जोवा मळे छे. आमांना एकना एक धातुना जुदा जुदा गण थता होई एवडी संख्या थई छे; पण सामान्य रीते 1700 जेटला धातु आवी रहे छे. ए 1700 धातुस्वरूप टूकामां टूकां छे अने एनाथी टू का रूप न मळी शके. परंतु आ धातुओमां पण एकबीजामांथी विकसेला धातओ तारववामां आव्या विटनीए लगभग 800 धातुओ ज होवान बताव्यु छे. एनाथी आगळ वधी, भारत-युरोपीय भाषाकुळना मूळ धातुओनी संख्या कदाच 50 मौलिक धातुओथी वधु नहि होय एवू पण भाषाशास्त्रीओ कहे छे." 38 शास्त्री जी का संस्कृत धातुकोश को केवल 50 की संख्या में सीमित कर देना यादृच्छिक लगता है. ऐसा माननेवाले अन्य भाषाशास्त्रियों के इन्होंने संदर्भ दिये होते तो इस धारणा का शास्त्रीय आधार परखा जा सकता. इसके अभाव में विटनी की गणना अधिक प्रतीतिजनक लाती है. संख्या की अनिश्चितता हिन्दी-गुजराती धातुओं के बारे में भी है. भाषाविदों की धारणाएँ एवं गणनाएँ अलग-अलग हैं. स्वामी श्रीभगवदाचार्यजी ने 'गुर्जर-शब्दानुशासन' के अंत में धातुपाठ दिया है. इसमें 1972 धातुओं का समावेश है. स्वामीजी ने सकर्मक, प्रेरक आदि रूपों को भी स्वतंत्र धातु माना है. इसी कारण संख्या लगभग द्विगुणित हो गई है. कई धातुएँ उनसे छूट भी गई हैं. इस प्रबंध के परिशिष्ट में 2136 गुजराती धातुओंका समावेश हुआ है. डा. हानले के अनुसार संस्कृत से हिन्दी में आई हुई मूल धातुएँ 393 तथा यौगिक धातुएँ 189 हैं. डा. भोलानाथ तिवारी हिन्दी धातुओं की पूरी संख्या 2000 बताते हैं. लगता है कि इस संख्या में आपने मूल धातुओं का ही नहीं, क्रिया के सकर्मक, अकर्मक तथा प्रेरक रूपों का भी समावेश कर लिया है. डा. श्रीराम शर्मा ने 'दक्खिनी हिन्दी का उद्भव और विकास' में परिशिष्ट के रूप में दक्खिनी का धातुपाठ दिया है, जिसमें 459 धातुओं का समावेश है. लेखक ने यहाँ स्पष्टता की है कि यह सूची पूर्ण नहीं है. इसकी संख्या में वृद्धि हो सकती है तो दूसरी ओर दक्खिनी की सभी धातुएँ हिन्दी में व्यापक रूप से प्रचालत नहीं है. 'कचवाना' (असंतुष्ट होना) जैसी गुजराती में विशेष प्रचलित धातुएँ भी इस सूची में समाविष्ट हैं. प्रस्तुत प्रबंध में बोली-विषयक शोधकार्यों से प्राप्त धातुओं का भी समावेश किया है. सकर्मक, अकर्मक तथा प्रेरक जैसे रूपों में से एक ही रूप देने का प्रयत्न किया है किन्तु विविध ध्वन्यात्मक रूपों को बिना छाँटे एक साथ देने में औचित्य समझा है. तुलनात्मक धातु-कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016001
Book TitleHindi Gujarati Dhatukosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary, Dictionary, & Grammar
File Size15 MB
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