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________________ पूर्वकार्य का अध्ययन १ संस्कृत-धातुचर्चा : ईसा पूर्व ८वीं सदी में यास्क ने शब्दों को चार पद-विभागों में बाँटा है : 'चत्वारि पदजातानि नामाख्यात चोपसर्ग-निपाताश्च ' (निरुक्त १. १.)-पद चार प्रकार के होते हैं : नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात. वेंकटमाधव ने आख्यात और नाम को स्व-अर्थदर्शी बताया है और कहा है कि उपसर्ग तथा निपात स्वतन्त्र नहीं हैं. यहाँ 'आख्यात' शब्द क्रिया का निर्देश करता है : 'क्रियावाचकम् आख्यातम् ।' पाणिनि ने ईसा पूर्व ५वीं शताब्दी में इसे 'तिङन्त ' कहा है और नाम, उपसर्ग, निपात का समावेश सुवन्त के अंतर्गत किया है. अव्यय को भी वे इससे अलग नहीं रखते.. यास्क ने प्रधानता की दृष्टि से ही आख्यात और नाम में भेद किया था : आख्यात में क्रिया की प्रधानता है और नाम में द्रव्य की. नाम का भी धातु के समान प्रयोग किया जाता था. पाणिनि ने अधिकांश शब्दों को धातुज माना है. संस्कृत वैयाकरणों की दृष्टि से धातु शब्द, बड़ा ही व्यापक था. नाम, आख्यात और अव्ययों में - सभी प्रकार के पदों में धातु मूल रूप में विद्यमान मानी जाती थी. इस संदर्भ में डा. युधिष्ठिर मीमांसक ने लिखा है : 'दधाति शब्दरूपं यः स धातुः' सर्वथा सत्य है, परन्तु इसका वास्तविक तात्पर्य 'विभिन्न प्रकार के शब्दरूपों को धारण करनेवाला जो मूल शब्द है वह धातु कहलाता है' है. अर्थात् जो शब्द आवश्यकतानुसार नाम-विभक्तियों से युक्त होकर नाम बन गए, आख्यात-विभक्तियों से युक्त होकर क्रिया का द्योतन करने लगे और उभयविध विभक्तियों से रहित रहकर स्वार्थमात्र का द्योतक हुए, वह (तीनों रूपों में परिणत होनेवाला) मूल शब्द ही धातु-पद-वाच्य कहलाता है." ____ धातु एक संकल्पना है. 'वाक्य ' और 'पद' से भिन्न 'शब्द' भी संस्कृत वैयाकरणों की एक संकल्पना है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016001
Book TitleHindi Gujarati Dhatukosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary, Dictionary, & Grammar
File Size15 MB
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