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________________ है तो दूसरी परम्परा के अनुसार इसके लेखक तिरूवल्लुवर प्रख्यात पांच महाकाव्यों में से एक है। इन पांच महाकहे जाते हैं । अहिसा सिद्धान्त इस ग्रन्थ का आद्योपांत काव्यों में से तीन जैन ग्रन्थ हैं और दो बौद्ध ग्रन्थ । प्राधार रहा है । अवशिष्ट दो जैन महाकाव्यों के नाम हैं-बलैयापति और नालडियार-यह एक संग्रह ग्रन्थ माना जाता है। जीवकचिंतामणि । पांचों महाकाव्यों में जीवकचिन्ताकहा जाता है कि उत्तर में दुष्काल पड़ने के कारण पाठ । मणि सबसे बड़ा तो है ही, साथ ही उपलब्ध समस्त हजार जैनसाधू दक्षिण-पांडयदेश में पाए थे। कालान्तर तमिल साहित्य में सवोत्कृष्ट भी है। में वे वापस जाने की तैयारी करने लगे । पांड्य नरेश तमिल में पांच लघुकाव्य भी अति प्रसिद्ध हैं । है वहीं ठहराना चाहते थे, पर वे नहीं माने । वे राजा उनके नाम हैं-यशोधर काव्य, चूलामणी, उदयनन् कथे, से प्रच्छन्न होकर चले गए। जाते समय प्रत्येक साधु ने नागकुमार काव्य और नीलकेशि । ये पांचों ही जैन ताड़ के पत्तों पर एक-एक पद्य लिखकर छोड़ दिया। कृतियां हैं । यशोधर काव्य इन सबमें प्रथम कोटि का बाद उन्हीं पद्यों का संग्रह करने पर उपयुक्त ग्रंय माना जाता है। अस्तित्व में पाया । यह ग्रन्थ भी कुरल के समान ही उपयुक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त अनेरिच्चारम. आदरणीय तथा एक उत्कृष्ट कोटि का नीति ग्रन्थ माना पलनोलि आदि नीतिग्रन्थ, मेरूमंदर पुराणाम.श्रीपराणम जाता है। आदि पुराणग्रन्थ यप्परंगुलक्करिकै, यप्परंगुलवृत्ति, शिलप्पदिकारम्-यह एक महाकाव्य है । इसके लेखक नेमिनाथम् और नानूल आदि व्याकरण ग्रन्य, अच्चनंदिचेर के युवराज हैं जो कि जैन मुनि हो गए थे। इसमें भालै आदि छन्दःशास्त्र और जिनेन्द्रभालै आदि ज्योतिष दक्षिण भारत के इतिहास में दिलचस्पी रखने चालों को ग्रन्थ भी जैन साहित्यकारों की तमिल में बहत महत्त्व प्रचुर सामग्री उपलब्ध हो सकती है । यह तमिल के पूर्ण कृतियां मानी जाती है। धर्म-श्रुत-धनानां प्रतिदिनं लवोऽपि संगृह्यमाणो भवति समुद्रादप्यधिकः । नीतिवाक्यामृतसोमदेवाचा । धर्म ( मानव कर्त्तव्य ) श्रुत ( ज्ञानाभ्यास) और धन इनका यदि प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा अंश संगृहित किया जाय तो किसी दिन इनकी राशि समुद्र से भी अधिक हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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