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________________ || श्री विजय मुनि जी महाराज जनवरी २८, १९८५ आप लोग तीसरी अन्तर्राष्ट्रीय जैन कांफ्रेंस का भायोजन नई दिल्ली में कर रहे हैं यह जानकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई। आज का मानव भयाक्रांत है। राष्ट्राधार चिंतातुर हैं। समस्त चेतना अपने सुरक्षित भविष्य के प्रति शंकित है। आणविक हथियारों की अंधी दौड़ ने पूरी मानव सष्टि को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है जहाँ जिन्दगी का हर दिन उधार का दिन है। किसी एक व्यक्ति का पागलपन पूरी जाति का संहार कर सकता है। इस भयानक स्थिति को टालने के मार्ग की तलाश है और वह भगवान महावीर के सिद्धांतों की शरण में आने से सम्भव है। महावीर के सिद्धांतों को विश्व स्तर पर समझने और समझाने का जो भी प्रयास हो रहा है वह अभिनन्दनीय है, सराहनीय है, प्रशसनीय है। इस दिशा में मेरे अंतरंग मित्र आचार्य सुशील मुनि जी ने जो पहल की है और विश्व स्तर पर जैन सिद्धांतों को जो प्रतिष्ठा दिलवाई है वह जैन समाज के लिए गौरव की बात है। पूरे विश्व का जैन समाज एक मंच पर आकर एक स्वर से भगवान महावीर के सिद्धांतों की बात करे इससे अधिक शुभ हमारे समाज और पूरे विश्व के लिए क्या हो सकता है ? मैं इस सद्प्रयास के लिए श्री सुशील कुमार जी को और कान्फ्रेंस के आयोजकों को साधुवाद देता हूं, उनके प्रयासों का समर्थन करता हूं, और उनको अपना पूरा सहयोग देने के लिए हमेशा तैयार हूं। आपकी इस कांफ्रेंस से भगवान महावीर के सिद्धांत विश्व के सामने प्रकट हों, मानवता को उससे जीने का नया रास्ता मिले और जैन समाज एकता के सूत्र में जुड़े मेरी इस अवसर पर यह मंगल कामना है। विजय मुनि शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014037
Book TitleInternational Jain Conference 1985 3rd Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages316
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size12 MB
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