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________________ तक भी बहुत कम रुचि पाते हैं। इसलिये वे विशेषज्ञोंके लिये ही महत्वपूर्ण हैं । वे सामान्य पाठकोंकी रुचि का दावा नहीं कर सकते । डॉ० विन्टरनित्जके इस कथनमें प्रांशिक सचाई हो सकती है, पर उनके इन विचारोंसे मैं सर्वथा सहमत नहीं हूं । क्योंकि वे विशेषज्ञों के लिये ही महत्वपूर्ण हैं-इन विचारोंका निरसन स्वयं डॉ० विन्टरनिरजकी अग्रिम पंक्तियोंसे हो जाता है । मागे उन्होंने लिखा है- जैनों ने हमेशा यह ध्यान रखा है कि उनका साहित्य जनता तक पहुंचे, इसीलिये उन्होंने सैद्धान्तिक ग्रन्थ व प्राचीन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा । प्रत: वे मात्र विशेषज्ञोंके लिये ही उपयोगी हों, ऐसा नहीं लगता । हाँ प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापनकी परम्परा छूट जाने या उसकी लोक भाषाके रूप में प्रतिष्ठा न रहने के कारण सामान्य जनताके लिये वे सुगम या सुज्ञेय नहीं रह सके। लेकिन हर युगके मनीषी प्राचार्यों और विद्वानोंने विशाल श्रागम-ग्रन्थोंके प्रतिपाद्यको युग भाषा में प्रस्तुत करनेका सदा प्रयत्न किया है । युग-प्रधान आचार्य श्री तुलसीके वाचना प्रमुखत्वमें चल रहे श्रागम सम्पादन का उपक्रम उसी श्रृङ्खलाकी एक सुदृढ़ कड़ी है । दूसरी बात है नीरसता की, लेकिन वस्तु स्थिति यह है कि विषयोंकी विविधता के कारण इन्हें पढ़ने में रुचि और ज्ञान दोनों परिपुष्ट होते हैं। जैन प्रागम साहित्य उपमाम्रों और दृष्टान्तोंसे भरा पड़ा है। देश, काल, क्षेत्र, सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप अनेक उपमाएँ व दृष्टान्त प्रचलित होते हैं । इनके प्रयोगसे प्रतिपाद्यमें प्रारण भर जाते हैं । वह सहज ही हृदयंगम हो जाते हैं । आगम साहित्य में गम्भीर अर्थ भी सुबोध और सरस शैली में प्रकट हुआ है। इसमें उपमाओं और दृष्टान्तोंका अनन्य योग रहा है। उत्तराध्ययन एक पवित्र धर्मग्रन्थ है । पर उसमें प्रयुक्त उपमानोंकी बहुलता के कारण ऐसा लगता है, यह कोई काव्य-ग्रन्थ है । सम्भव है इसीलिये स्वयं विद्वान् विन्टरनित्जने इसे भ्रमण काव्य कहा है। वे आगे लिखते हैं जैन आगमों में उदाहरणों और उपमानोंके माध्यम से सिद्धान्तोंकी बात कहने का अद्वितीय तरीका दृष्टिगत होता है। उनके इस कथन में पर्याप्त यथार्थता के दर्शन होते हैं । क्योंकि अनेक स्थलों पर ऐसी व्यावहारिक उपमानोंका प्रयोग हुआ है, जिनके माध्यम से वयं विषयमें सजीवता मा गई है। जैसे दोनों कानों में झूलते चमकीले कुण्डल युगलके मध्य स्थित दिव्य प्राकृतिको वरिंगत करते हुए लिखा है मानो पूनमकी रातमें शनि और मङ्गल नक्षत्रोंके बीच नयनानन्द शारदीय चंद्र उग आया हो । ➖➖➖ समुद्री तूफान से प्रताड़ित उछलती गिरती घोर डूबती- तैरती नौकाका उत्प्रेक्षाओं के माध्यम से कितना सजीव चित्र खींचा गया है "ज्ञाता" के नौवें प्रध्ययन में- "भयंकर समुद्री तूफान के कारण नौका ऊपर उछलती है और एक झटकेके साथ पुनः नीचे गिरती है; जैसे करतलसे ग्राहत गेंद बार-बार पत्थरके प्रांगनमें उछलती गिरती है। ऊपर उछलती हुई वह ऐसी लगती है जैसे विद्या-सिद्ध कोई विद्याधर- कन्या हो और नीचे गिरती हुई वह 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014037
Book TitleInternational Jain Conference 1985 3rd Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages316
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size12 MB
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