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________________ नैतिक पर्यावरण कसंरक्षण मानवीय आचार संहिता - 'अणुव्रत' के द्वारा ____डॉ. वीरबाला छाजेड़ नैतिकता आज के युग का सर्वाधिक चर्चित शब्द है। नैतिकता सामाजिक संबंधो का विज्ञान है। नैतिकता की समस्या विभिन्न युग में विभिन्न प्रकार की रही है। यह समस्या दो हजार वर्ष पहले भी थी और आज भी है किन्तु देश और काल, सामाजिक, आर्थिक और राजनितीक व्यवस्थाओं तथा मूल्यों के दृष्टिकोणों के परिवर्तन के साथ उसका रुप बदल जाता है। आज का युग नैतिक समस्याओं का युग है। कुछ विकासशील गरीब देशों में अर्थ विषयक अनैतिकता चल रही है तो कुछ विकसित देशों में चरित्र विषयक अनैतिकता चल रही है । सामाजिक व राजनीति विषयक अनैतिकता की भी यही स्थिति है। यह बहुरुपी अनैतिकता मानवीय दृष्टिकोण या आध्यात्मिक समानता की अनुभूति होने पर मिट सकती है। __ 'अणुव्रत' मानवीय दृष्णिकोण व आध्यात्मिक समत्व का दर्शन है। भौतिकता और आध्यात्मिकता ये दो स्वतंत्र धाराए है। इनमें विरोध नहीं है। भौतिक साधनों के बिना जीवन शक्य नहीं है और आध्यात्मिक अनुभवों के बिना मानसिक संतुलन संभव नही है। दोनो का अपना-अपना उपयोग एवं क्षेत्र है। 'अणुव्रत' क्या है ? एक वाक्य में इस प्रश्न का उत्तर हो सकता है। चरित्र विकास के लिये किये जाने वाले संकल्प का नाम अणुव्रत है। अणुबम विनाश का प्रतीक है तो अणुव्रत ने उसके विपरीत निर्माण की भूमिका का चयन किया है। ‘अणुव्रत का कार्य है ।-जाति, वर्ण, संप्रदाय देश और भाषा का भेदभाव न रखते हुवे मनुष्य मात्र को संयम की प्रेरणा देना । अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात आज से ५३ वर्ष पूर्व सन १९४७ में तेरापंथ धर्म संघ के ९ वे आचार्य तुलसी द्वारा हआ। इसका उद्देश्य मनुष्य मात्र में हो रहे नैतिकता के ह्रास को रोकता है। वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञ इस अणुव्रत आंदोलन को गति प्रदान कर रहे हैं। 'अणुव्रत ने जीवन-विज्ञान के रुप में ऐसी ध्यान पद्धति का विकास किया है। जिसके प्रयोग से मनुष्य की भावधारा में निश्चित रुप से परिवर्तन लाया जा सकता है । भाव धारा का नियंत्रण करती है- हमारी अंतः स्त्रावी ग्रंथियाँ । ध्यान तथा आसन प्रयोगों से ग्रंथियों के स्त्रावों में परिवर्तन किया जा सकता है। नैतिक पर्यावरण के ह्रास के दो मुख्य कारण है - बाह्यय व आंतरिक । नैतिक पर्यावरण को दूषित करने वाले बाह्यय कारणों में वातारण, परिस्थिति, अश्लील साहित्य, फिल्म, दूरदर्शन, केबल आदि आते है । आंतरिक कारणों में तृष्णा, क्रोध, अहंकार, लोभवश होकर भी मनुष्य अनैतिक हो जाता है। यदि व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया हो तो “सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधारेगा'। यदि आंतरिक विकास द्वारा इस सभी दुष्प्रवृत्तियों का शोधन हो तो भौतिक पर्यावरण का संरक्षण किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014034
Book TitleDegradation of Ethical Environment 2000 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav College Ujjain
PublisherMadhav College Ujjain
Publication Year2000
Total Pages72
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size3 MB
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