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________________ समीक्षा नैतिक परिवेश का अपकर्ष । सारांश अाज सम्म मानव समाज में नतिक परिवंश की अद्योगति एक अनभत तथ्य है । सभी गष्ट्रां क सजग बुद्धिजीवी चिन्तित भी हैं । आध्यात्मिक जीवन का प्रबल पहरी हान के कारण भारतीय मनीषा की चिन्ता अत्यन्त गहन और प्रखर है । आज की गष्ट्रीय मंगोटी हमी चिन्ता का परिणाम है । प्रत्येक क्षेत्र में नैतिक गिरावट के विविध कन्सिल का तं वीभत्स तरीकों और रूपों में आप सभी परिचित है अत: उनका वर्णन करना. अभीष्ट नहीं जान पड़ता है । फिर भी यह अवश्य अपेक्षित है कि इस गिरावट का समझने के लिये हम एतिहासिक दृष्टिकोण अपनाते हुये विशेष रूप में भारत के सन्दर्भ में उसके सांस्कृतिक चिन्तन-प्रवाह की प्रक्रिया को समझे । डॉ. न. पी. अवस्थी आगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014034
Book TitleDegradation of Ethical Environment 2000 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav College Ujjain
PublisherMadhav College Ujjain
Publication Year2000
Total Pages72
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size3 MB
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