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________________ स्मारिका के सम्बन्ध में राजस्थान प्रान्तीय भगवान महावीर २५०० वां निर्वाण महोत्सव समिति ने स्मारिका प्रकाशन का निर्णय पर्याप्त विलंब से लिया और जब यह गुरुतर कार्य करने का भार हम पर डाला गया तो एक बार तो हम हिचके कि इतने कम समय में यह कार्य कैसे सम्पन्न होगा फिर यह सोच कर कि प्रयत्न करने में क्या हानि हैं हमने इसे स्वीकार कर लिया और हमें प्रसन्नता है कि इतने कम समय में यह कार्य सम्पन्न होकर स्मारिका यथासमय पाठकों के हाथों में है। इसके लिए सबसे अधिक धन्यवाद के पात्र तो हमारे वे कृपालु लेखक हैं जिन्होंने हमारे एक पत्र पर ही अपने रचनाएं समय पर भेज दीं। उनके प्रति जितनी भी कृतज्ञताज्ञापन किया जाय थोड़ा है। दूसरे धन्यवाद के पात्र हैं प्रबन्ध सम्पादक गण जिन्होंने सारी व्यवस्था जुटाई । सम्पादकमण्डल के साथी तो मेरे अपने ही परिवार के, क्षेत्र के हैं उनका 'पूर्ण सहयोग और सहायता मुझे मिली वे भी धन्यवादाह हैं। डा० भानावत का नाम इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय है। प्रेस के मैनेजर श्री संघी से लेकर वहां के सारे कर्मचारी भी कम धन्यवाद के पात्र नहीं हैं जिन्होंने रातों जग कर इसका कलापूर्ण मुद्रण किया है। मेरे सहायक श्री चेतन कुमार जैन एवं श्री प्रमोद जैन ने प्रूफरीडिंग, पत्र व्यवहार आदि कार्यों में मेरे कंधे से कंधा भिड़ा कर कार्य किया है। इन सबका तो मैं धन्यवादाह और कृतज्ञ हूं ही साथ ही मैं निर्वाण महोत्सव महासमिति के कार्यकर्ताओं का भी कि उन्होंने मुझे इस गुरुतर कार्य के योग्य समझा। स्मारिका में निश्चय ही कमियां रही हैं। जिस रूप में उसे पाठको के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते थे उस रूप में नहीं कर सके इसका खेद है। समयाभाव के साथ इस क्षेत्र की मेरी अनुभव शून्यता भी इसका कारण है। इन सब श्रुटियों और खामियों के लिए मैं पाठकों से क्षमा प्रार्थी हूं । अगर कोई अच्छाइयां हैं तो वे सब मेरे साथियों के अनन्य सहयोग और सत्परामर्श का फल है और वे ही इसके श्रेय के सच्चे अधिकारी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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