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________________ 3-14 शोभा देवे है । समरथवान री अहिंसा हो सांची अहिंसा है। जिरण मिनख मांही समरथ री शक्ति है, वो ही क्षमां रो प्रधिकारी है। समरथ होता हुयां भी शत्रु नै छोड देवो, क्षमा कर देवो, अहिंसा 'गुण है। गांधीजी भी इसी अहिंसा ने माने है । गांधीजी रा मत माँहि 'महिंसा वीरां रो धर्म है ।' हिंसा रो प्रभाव ही महिंसा कहलावे । जो मिनख हिंसा रा काम मांहि न तो रुचि ले र न करें, वो अहिंसा कहलावे । महावीर स्वयं अहिंसक हुया और वरणां रा समै मांहि जो पशु री हिंसा वा बली चाली उरण नं रोकरण वास्ते वै प्रापरणों सारो जीवन खपायो । लोगां ने दया री भावना से महत्व समझायो और कह्यो कि हरएक प्राणी में समान जीव है चाहे छोटो प्राणी हो या मोटो । दर्द सबने होवे । आपां यदि कोई ने बचां नसको तो मारां भी क्यूं ? श्रापां ने जस्यो कष्ट, दुख होवे है, बस्यो सबने होते है । इणीज भांत महावीर दास री प्रथा रो भी विरोध करयो । प्रत्येक श्रादमी नै योग्यता सारी काम-धंधो पर ऊंको मूल्य देखो होवे है । शोषण री प्रवृत्ति से महावीर विरोध करयो । समानता श्रर स्वतंत्रता री महिमा जण जरण ने समझायी । महावीर रा मत मांही प्राणी से स्वतंत्र होत्रो जरूरी है । बिनां इण र विकास नहीं हो सकं । महावीर र अनुसारि या कोई ठीक नहीं लागे कि एक तरफ तो मनुष्य गरीबी रो जीवन बितावै भोर दूसरी तरफ ऊंचा- 2 महलां में सेठ राजा Jain Education International ऐश-प्राराम करें। इस भांति महावीर मनुष्यमनुष्य रे बीच हीनता र उच्चता री भावना नं उन्मूलन वास्ते जन-जन नं उपदेश दियो । वां का अनुसार न कोई सर्वथा उच्च है । प्रर न कोई सर्वथा नीचो । अनेकान्त ही महावीर री अहिंसा दर्शन को सार है | महावीर रा समवसरण मांहि सभी प्रकार रा जीव समान भाव से धर्मोपदेश सुरणबां वास्ते एकत्र हुवा | महावीर री. तपस्या से प्रभाव इतनो विशाल हो कि सिंह, सरप, गाय, हिरण, हाथ-आदिपरस्पर विरोधी जीव भी मापरो वैर भाव छोड़र वाँ के पास प्रेम-भाव से एक साथ भा बैठा । या सब महावीर रो महिंसक तप रो प्रभाव रह्यो । सही बात तो भा है कि नहावीर खुद तो महान बण्यां ही पण प्रपरणां श्रहिंसादि प्रभाव सें वं प्रोरा ने भी महान् बणायां । यां पैला भी हिसारो रूप म्हांने मिले है, पर महावीर स्वामी अहिंसा ने सबसो ऊंचो श्रासन दियो घर ऊंकी महिमां जन-जन नै बतार मनुष्य मनुष्य में दया की भावना को संचार करघो । ईसू जगत माहि शांति व्यापी | महावीर तन र मन दोन्यां मांहि अहिंसा रो प्रतिपादन करचो । इणीज भांति महावोर देव अहिंसारा साँचा पूत कहलाया । आज का काल मांहि गांधी रो अहिंसा पर भी महावीर रो प्रभाव है, जीकू' कारण सूही भारत ने श्राजादी मिली । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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