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________________ 3-12 'वर्धमान' कालान्तर में महावीर नाम सू लोक- ऊ अपणो सारो जीवन लोगन कू या पाप-पंक सू प्रसिद्ध हो गयो। निकालबा में लगायगो । या सोचकर उणने अपणो वर्धमान महावीर शुरु सू ही बड़ो चिन्तनशील सारो जीवन लोगन कू-प्राणी मात्रन कू सुखी और मननशील प्रकृति को हो । लोगन कू यहां करबा में लगा दियो । तीस बरस की भरी जवानी में तक कि जीव-जन्तुन कू भी दुखी देख के वा को उणने राज का सुख-भोगन कू तिलाञ्जलि दे दी। मन करुणा सू भर जावो। एकान्त में ऊ प्रायः वे संसार का सुखन कू छोड़कर सच्चा सुख खोजबा सोचतो-या संसार में सभी जीव दुखन सू घबराने क निकल्या ताकि पृथ्वी का जीव मात्र क सच्चो सूत्र है । वे सभी सुख चाह। सभी चाह वें कि वे सुख प्राप्त हो सके । या खोज में उणने बारह बरसन भोगता हुमा जीवित रहें। सबकू अपणो जीवन तक कठोर साधना कीनी। या कठोर साधना सू जो प्यारो है; मरबो कोई नाय चाहवे । संसार में बच्चो ज्ञान (केवल्य ज्ञान) उरणने पायो वाकू जनजीव मात्र को यो ही प्राकृतिक सुभाव है। परन्तु जन तक पहंचाबा में उणने अपना जीवन का शेष आदमी कू देखो । वही या प्राकृतिक नियम को तीस बरस भी होम दिया । या तरहा जीव मात्र का सबसू बड़ो विरोधी है। प्रपणी स्वार्थ-पूर्ति कू, वा मुक्तिदाता ने अपणो 72 बरस को सबडो जीवन अपणा तुच्छ सुखन कू पूरा करबा कू वा ने सबड़ो लोगन कू संसार सू मुक्ति का मार्ग बताबा में लगा जीवन को सुख नष्ट कर रख्यो है; दुनिया की दियो । लोगन ने भी अपणा या मुक्तिदाता का शांति भंग कर रखी है । जीवन की सुन्दरता कू चरणन में पूरी श्रद्धा सू अपणो सिर झुमायो और नष्ट कर दियो है। अपणा स्वार्थ की खातिर वा वा कू अपणो तीर्थंकर स्वीकार कियो । तीर्थकर दूसरान का जीवन की, उनका सुखन को बलि मानी या विकट भव-सागर सू पार होबा को तीर्थ चढ़ाव है। यो ही मनुष्य को पाप है। उसका या (घाट) बताने व लो । ऐसो हो वा तीर्थंकर महावीर पाप ने पृथ्वी का जीवन कू नरक बना रख्यो है। प्राणी-मात्र को मुक्तिदाता; अनोखो महापुरस । ... यू सोच-विचार कर महावीर ने अपनो जीवन ऐसा लोग जदा-कदा ही या पृथ्वी पंपाके या क को लक्ष्य निश्चित कर लियो । वा ने सोच ली कि धन्य कर जावें हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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