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________________ प्रार्य भट्ट और उन पर जैन ज्योतिष का प्रभाव वैद्य प्रकाशचन्द्र 'पांड्या' प्रायुर्वेदाचार्य, साहित्यरत्न पेच एरिया, भोपालगंज, भीलवाड़ा ( राज० ) भारतीय वैज्ञानिकों ने 19 अप्रैल 1975 को अन्तरिक्ष में जिस भारतीय गणितज्ञ के ' नाम से उपग्रह का प्रक्षेपण किया, वे प्रार्य भट्ट कुसुमपुर के ( पटना के पास) रहने वाले थे । स्वयं ने अपने गणितसार की प्रथम श्रार्या में लिखा है 'प्रायं भट्टस त्विह निगदहि कुसुमपुरेऽम्भचितं ज्ञानम् ।' 6 किन्तु, कई विद्वान् इनको वर्तमान कुसुमपुर (पटना) को यह स्थान नहीं मानते । उनका कहना है कि इस प्रान्त में 'आर्य सिद्धान्त' का प्रचार बिल्कुल नहीं है। डा. केर्न ने जिन प्रतियों के माधार पर 'आर्य-सिद्धान्त' को पाया है वे तीनों मलयालम लिपि में थी .......सुदूर दक्षिण भारत में भौर विशेषतः मालाबार प्रान्त में भी इसका प्रचार है। उधर जिन प्रान्तों में तामील मंलयाली लिपियों का व्यवहार होता है, उनमें सौर मान का पंचांग चलता श्रीर वह श्रार्य पक्षीय है ।" इससे अनुमान होता है कि आर्य भट्ट का कुसुमपुर कदाचित् दक्षिण में होगा । इसीलिए कई विद्वान् इन्हें दक्षिण भारत के अश्मक नामक स्थान पर पैदा हुआ मानते हैं । श्रापका जन्म समय सन् 176 (शाके 398 ) में माना जाता है । अपने जन्म समय के सम्बन्ध में कालक्रियापाद में उन्होंने लिखा है ' षष्ठ्यद्वानां षष्टियंदा व्यतीतास्त्रयश्च युगपादाः ।' अधिका विंशतिरद्वास्तदेह मम जन्मनो तीता ।" इससे वे तीन युगपाद और 3600 वर्ष बीतने के समय 23 वर्ष के हो चुके थे। पर, उनका यह समय होना ठीक प्रतीत नहीं होता। क्योंकि, ये वराहमिहिर के पहिले हो चुके थे । वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थों में इनका उल्लेख किया है । वराहमिहिर को ई. पू. 123 से ई. पू. 41 में होना विद्वानों ने स्वीकार कर लिया है। 2 उस हिसाब से ई. पू. 123 से पहिले या उसके श्रासपास प्रापका समय होना चाहिए। परन्तु अकाट्य प्रमारणों के प्रभाव में निश्वित नहीं कहा जा सकता । श्रार्यभट्ट पर जैन- ज्योतिष का पूर्ण प्रभाव था । उन्होंने कालक्रियापाद में युग के समान 12 भाग करके पूर्व भाग का उत्सर्पिणी भोर उत्तर भाग का अवसर्पिणी नाम बतलाया है तथा दोनों के सुषमा, सुषमा- सुषमा प्रादि छह-छह भेद बताये हैं 'उसरणी युगार्द्ध पश्चपादवसर्पिणी युगार्द्धच । मध्ये युगस्य सुषमाउउदाब है दुःषमाऽन्यं शात् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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