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________________ 2-106 महावीर के तपस्वी-साधक व्यक्तित्व की प्रभावो- आकलन में सर्वाधिक मदद मिलेगी। महावीर त्पादक छवि अंकित की है: लोकगीतों के लोक-नायक रहे हैं। बुन्देली घरेलू इस निखिल सृष्टि के अणु-अणु के, लोकगीतों में महावीर विषयक अनेकानेक गीत संघर्ष, विषमता ओ, विरोध, प्रचलित हैं। कल्याण-सरित में डूब चले, (घ) प्रशस्तिकाव्य में महावीर : हो गया, वैर आमूल शोध । भगवान महावीर की प्रशस्ति तथा स्तवन में तेरे पद-नख के निर्भर तट, हिन्दी में शताधिक गीतों तथा कविताओं की सब सिंह, मेमने मृगशावक, सृष्टि हुई है। इनमें महावीर का सर्वतोमुखी रूप पीते थे पानी एक साथ, भास्वर हो गया है। तेरी छाया में प्रो रक्षक । हिन्दी में ऐसे भी काव्य लिखे गए हैं कि जिन-चक्रवति, सातों तत्वों पर, जिनमें या तो चौबीसों तीर्थंकर का स्तवन मिलता हुमा तुम्हारा नव-शासन । है अथवा कतिपय तीर्थकरों की प्रशस्ति मिलती तीनों कालों, तीनों लोकों पर, है। इनके अन्तर्गत भी हमारे महावीर स्वामी का बिछा तुम्हारा सिंहासन ॥ हाल ही में श्री वीरेन्द्र कुमार जैन की महा गुणगान मिलता है । गुणभद्र द्वारा लिखित जिन चतुर्विंशति स्तुति, विनयप्रभ की पंच स्तुतियां, वीर स्वामी पर एक काव्यकृति प्रकाशित हुई है। उपाध्याय जयसागर द्वारा लिखित चतुर्विंशतिजिनमुनि विद्याविजयजी 'दीप-माला' में वर्द्धमान स्तुति, हीरानन्द सूरि द्वारा लिखित विद्याविलास के निर्वाण का स्मरण करते हैं : वप्पवाडो, विनयचन्द्र मुनि द्वारा लिखित चौबीस नीति रीति प्रीति तूर्ण नीन्द में गई, तीर्थंकर देह-प्रमाण चौपई, और भवानीदास द्वारा झूठ लूट फूट राज्य में समा गई। . लिखित चौबीस जिनबोल में महावीर स्वामी का ईति भीति दूर अन्य-तन्त्रता गई, स्तवन मिलता है। - धन्य हिन्द भूमि दीपमाला आ गई। गेह द्वार प्रालिये थरी लगा गई, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पटनागंज रम्य दोप-ज्योति की लखी मुद्रा अब गई। (रहली : सागर) द्वारा प्रकाशित तथा खूबचन्द्र वर्द्ध मान धीर वीर याद आ गई, जैन 'पुष्कल' द्वारा लिखित पुस्तिका, श्री दिगम्बर बन्दना उन्हें करू प्रहर्द में लई। जैन अतिशय क्षेत्र, पटनागंज का परिचय में पडकल' (ग) लोक काव्य में महावीर : द्वारा लिखित भजन में महावीर की महिमा गायी ___महापुरुषों की यह विशेषता होती है कि वे गया है । सामान्य जन-जीवन की चेतना में प्रवेश कर जाते पटनागंज के महावीर हमारी पीर हरो। हैं और इसीलिए काव्य के विषय बन जाते हैं । मध्यप्रदेश जिला सागर में है रहली तहसील । महावीर स्वामी भी लोक-काव्य के विषय हैं। उन बहती स्वर्णभद्र की धारा सुन्दर सरस गम्भीर पर हिन्दी की अनेक स्थानीय बोलियों और जन- हमारी पीर हरो ।। पदीय भाषाओं में कविताएं तथा गीत लिखे गये उसके तट पर मूर्ति तुम्हारी, हैं। महावीर विषयक लोक-गीतों का भी पुस्तका- रथ में बैठी प्रान पधारी। कार संकलन किया जाना चाहिए। इससे विभिन्न हर्षित हुए सभी नर-नारी भई अचानक भीर।। बोलियों और लोक-साहित्य में महावीर के स्वरूप- हमारी पीर हरो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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