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________________ 2-90 नेमि प्रभु के उत्सर्गमयी जीवन से महमूद नामक एक मुसलमान कपिण्य भी प्रभावित हुमा जिसने निम्न 'कड़खा' की रचना की जो दिल्ली के धर्म पुरा जैन मंदिर में विद्यमान है। यद्यपि रचना उच्चकोटि की नहीं है फिर भी भक्तिभाव से मोतप्रोत है देखिए : नेमिनाथ का कड़खा सन्त तू दन्त तू' मजर तू' अमर तू सिद्धि तू बुद्धि तू मानवंता। कोष अरु लोभ जिन मान माया तजी जै जै हो नाथ तू पुण्यका ।। तोस्यू कौन सखर कर काम भय थरहरै कर बीनती पलभइ राजा। वाम कर मंगुलि कृष्णहि डोलियो नेम नरनाथ राजाषिराजा तोस्यू कौन ।।। जिन नाग सेज्या दली नेम से प्रति बसी बाम कर मंगुली धनुष साजा । स्वर्ग स्वर्ग पुरी इन्द्र आनए बटल्यो कलभल्यो शेष जब शंख बाबा ॥ तोस्यू कौन 121 • माता शिव देवीकी कूषि उत्पन्नियो स्वामी चिंतामनी रत्नवंस । सकल सुखकरन दुखहरन जादोपती अचल ज्यों मेरु चित्त थिर रहता ।तोस्यू कौन ।। छप्पन कोटिन जादो सिर मुकुट मरिण इन्द्र धरणेन्द्र तेरी करत सेवा । जैन महमूद जिन करत है वीनती राखलो सरण देवाधिदेवातोस्यू कोन 141 इति श्री महमूद का श्री नेमिषी का कड़खा समाप्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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