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________________ हिंसा धर्म प्रचारक : मिल संत तिरुवल्लुवर माज से ढाई हजार वर्ष पूर्व का समय संसार के इतिहास में विशेष महत्व रखता है, जब न केवल भारतवर्ष में वरन् समस्त विश्व में ऐसी अनेक विभूतियों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी साधना से अध्यात्म को नया अर्थ प्रदान किया, धार्मिक जगत् में एक नये वातावरण का निर्माण किया और ऐसा जीवन दर्शन प्रस्तुत किया, जो आज भी मानव जाति के लिए प्ररणा और उद्धार का पथ प्रशस्त करता है। ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी का समय वस्तुतः स्वर्णकाल ही था, जिसने प्रोटेगोरस, सुकरात कन्फ्यूशियस, महावीर और बुद्ध को विश्व-मंच पर एक साथ उपस्थित किया। महावीर ने भारत की त्यागमयी आध्यात्मिक परंपरा को नया मोड़ दिया और ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित व नेमिनाथपाश्वनाथ द्वारा संयोजित धर्म-साधना को व्यावहारिक जीवन दर्शन के रूप में प्रतिपादित किया। महावीर के सहस्रों शिष्यों ने अगली दो-तीन शताब्दियों में उनके संदेश को भारत के कोने-कोने तक पहुंचाया। भारत की प्राकृतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों ने भी इसमें परोक्षतः महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मौर्य शासन काल में उत्तर भारत में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा । ऐसे समय में धर्म-संघ की रक्षा के लिए मुनिवर भद्रबाहु ने अपने शिष्यों का विशाल समुदाय लेकर दक्षिणापथ में प्रवेश किया। उनका मुख्य पड़ाव रहा कर्नाटक । यहां से फिर यह धर्म समूचे दक्षिण भारत में फैला । कहा जाता है कि मुनि भद्रबाहु ने अपने सहयोगी विशाख मुनि को तमिल-प्रदेश में भेजकर जैन धर्म के प्रचार की नींव डाली। जातिवाद का विरोध करने वाला जैन धर्म उस तमिलनाडु में शीघ्र ही व्याप्त हो गया जो वर्ण-व्यवस्था के अभिशाप से ० इन्दरराज वेद माकाशवाणी, जयपुर Jain education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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