SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2-59 इन उद्धरणों से यह ज्ञात होता है कि भगवान पकड़ कर कुछ विद्वान लेउड़े और उन्होंने मगध में का निर्वाण हस्तिपाल राजा के चुगीकर में हुआ। निर्वाण सिद्ध करने के लिए महावीर बुद्ध काल में उस समय काशी कोशल के 18 राजे तथा नौ मल्ल भी तीन-तीन पावा की कल्पना और सृष्टि कर पौर नो लिच्छवी राजे विद्यमान थे। पावा में डाली जो ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाता । भगवान का यह प्राखिरी 42वां वर्षावास था । उस समय केवल एक यही पावा थी जो वर्तमान मज्झिम पावा का पहले अपावापुरी नाम था काल में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में अवस्थित जो राद में निर्वाण के समय पावापुरी किया गया। है। ये तीनों माम एक ही नगर या ग्राम के थे। जैन शास्त्रों में पावानगर नाम तो दिया हुमा यह हस्तिपाल उन्हीं नौ मल्ल राजामों में से है पर ठीक अवस्थिति का वर्णन नहीं है। प्रतः एक था । इसका नाम पूण्यपाल था पर बहत से जब पच्छिम-दक्षिण से जैन लोग अपने विस्मत हए हाथी रखने के कारण हस्तिपाल कहलाता था। इसने तीर्थों की खोज में पाए तो उन्हें पंच पहाडी वाला भगवान से निर्वाण से पहले समसवरण में अनेक राजगृह तो प्रासानी से मिल गया। और पास में ही उन्होंने "पोखरपुर" नाम के स्थान को इसके पहले प्रश्न किये थे। यह जैन धर्मावलम्बी था। "प"कार और बाद के "पुर" की समानता से यह चुगीपर मनोहर नामक उद्यान में रहा पावापुरी मान लिया। उस समय रिसर्च तो होते होगा । इतिहास और इतिहास के विशेषज्ञों के नहीं नहीं थे । प्राकिवां लोजी भी नहीं। समी उत्तरी मिली। अनुसार यह मल्ल देश वर्तमान उर र प्रदेश के उत्तर जैन तीर्थ जमीन के नीचे दबे दबाए विस्मृति के पूर्वी भाग में अवस्थित था । बज्जि या लिच्छिवी गर्भ में चले गए थे । अतः गलत स्थान को ही गणतन्त्र और मल्ल गणतन्त्र पड़ोसी देश थे-दाना निर्वात भूमि मानकर वहा तीर्थ स्थापित कर दी के बीच गंडक नदी बहती थी। दोनों पभिन्न मित्र गई । तीर्थ स्थापित हो जाने पर मंदिरादि बन थे। इनका बैर विरोध मगध राज्य के साथ चला गए और इधर 6-7 सौ वर्षों के अन्तराल में किसी माता था । दोनों राज्यों में एक दूसरे के अधिकारी ने इधर ध्यान नहीं दिया । गलती ज्यों की त्यों ही या राजा लोगों का जाना प्राना बन्द एवं वजित चलती चली आई । कवियों और पण्डितों ने तब था । प्रतः निर्वाण के समय केवल गण राजों का सेसी से इसा की प्रशस्ति गाई । यहां मन्दिर की स्थापना उपस्थित रहना और मगध के राजा की 13वीं इसवी सदी के प्रारम्भ में हुई थी भगवान मनुपस्थिति बड़ा ही पृष्ट प्रमाण है कि निर्वाण महावीर के निर्वाण 1700 वर्ष बाद । । ममध राज्य में नहीं हुअा, मल्ल गणराज्य में अगरेजी सरकार के राज्य काल के प्राकियोंहमा । यह मल्ल गणराज्य गंगा नदी के उत्तर में लोजिकल-पुरातत्व, विभाग स्थापित हुना और ही स्थित था। पावा नगर मल्ल गणराज्य की प्राचीन स्थानों का शोध, रिसर्च और अन्वेषण एक प्रमुख (राजधानी का) केन्द्रीय नगा था. प्रारम्भ हुआ। नालन्दा, वैशाली, पावा, श्रावस्ती, इसे ही केन्द्रीय पबा या उस समय । भाषा में कौशाम्बी इत्यादि प्रकाश में पाए । अब से मज्झिमापावा कहते थे । मज्झिमापावा, पावा, एक सवा सौ वर्ष पहले ही प्रसिद्ध अन्वेषक कनिन्धम पावापुर, पावापुर नगर, पावानगरी या पावानगर ने और तत्पश्चात् कालीइल ने घोषणा की कि एक ही नगर का नाम था। मज्झिमा का अर्थ है पावा गंगा के उत्तर गोरखपुर (वर्तमान देवरिया) पावा का मध्य भाग । जिले में है । कालीइल ने पूर्ण रूपेण सिद्ध कर ... कल्पसूत्र में कथित मज्झिमा पावा शब्द को दिया कि सठियावां-फाजिलनगर का संयुक्त ग्राम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy