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________________ 12-66 विकवा दें घर द्वार दवाते हैं गर्दन कन्या वालों की सभ्य वेश में शुभ्र बात से । करते हैं जो काली घातें कर भेड़िया मगरमच्छ भी __खा जाते हैं जिनसे मातें इनके फन्दे की फांसी का __कसता ही जाता है बन्धन भगवान ! क्या तुम सहन कर सकोगें इस युग का अर्चन वन्दन ! भव्य पुरातन देवालय हैं जीर्ण शीर्ण ढकते जाते है लोकेषणा के लिये भक्त मूर्ति-मन्दिर गढते जाते हैं इन्हें भला फुरसत ही कब है। पूजा को कर दिये पुजारी और बोलियों में धन से ही वनते स्वर्ग-मोक्ष अधिकारी धर्म, कलश-माला खरीद में व्यर्थ इन्हें सामाजिक 'चिन्तन' भगवन ! क्या तुम सहन । कर सकोगे इस युग का अर्चन बन्दन ? कितने चित्र छपे कलेण्डरों पेपर बेटों में पैन्दों में डायरियों, बल्वों स्वीचों में सिक्कों में ताले चैनों में ढढ लिये साधन कमाई के __ धन्धे वालों ने, नामों में श्रद्धालु गाढी कमाई से लेते हैं दुगने दामों में तुर्रा ये निर्वाण दिवस पर करते हैं प्रभु का अभिनन्दन ! भगवन ! क्या तुम सहन । कर सकोगे इस युग का अर्चन वन्दन ? ज्ञानचन्द 'ज्ञानेन्द्र' ढाना (सागर) सिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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