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________________ युग का अर्चन ? ____ वैद्य ज्ञानेन्द्र दाना भगवन् ! क्या तुम सहन कर सकोगे इस युग का अर्चन वन्दन ? यदि जगती पर होते तुम तो भक्तों में कैसे निभ पाते कोई कहता रखें दिगम्बर - कोई मुकुट - हार पहिनाते सौर दिगम्बर श्वेताम्बर की अपनी - अपनी टांग अड़ाते लड़ भिड़ कर न्यायालय में अपना अपना अधिकार बताते दोनों ही अधिकारी होते अपना अपना अभिनय, अर्चन भगवन् ! क्या तुम सहन कर सकोगे इस युग का अर्चन वन्दन ? कोई तुम्हें नियमित करता तेरा पन्थ, बीस पन्थों में कोई तुम्हें विवाहित कहता बालब्रह्मचारी, ग्रन्थों में कोई अक्षत - चन्दन से कोई मेवा, मिष्ठान चढाते अपनी अपनी ढपली पर अपना अपना ही राग बजाते 'तुम्ही एक' पर पन्थ अनेकों किस किस का करते संरक्षण भगवन् ! क्या तुम सहन कर सकोगे इस युग का अर्चन वन्दन् ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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