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________________ 2-36 बारह-वर्ष उग्र-तप कीना, पायो केवल-ज्ञान । महती सभा जीव प्रतिबोधे, महति-वीर गुणवान ।। पधारे महावीर भगवान ।। तीस वर्ष प्रभु किये विहारा, पशुवन जीवन-दान । जीने दो और जियो प्रेम से, दीना मन्त्र-महान ।। पधारे महावीर भगवान ॥ दूर किया तम-जगत ज्ञान से, प्रकटा ज्योतिष्मान ।। तीर्थ प्रकाशक अन्तिम जिनवर, चर्मतीर्थकर जान ।। पधारे महावीर भगवान ।। त्रिसला लाल, लाल-जग तारे, आभा लालहि-ज्ञान ।। हृदय लालि जिन धारण कीनी, भये धवल शोभान ।। पधारे महावीर भगवान ॥ विनय करत कर वद्ध शरण में, गावें तुम यश-गान । पार करो-भक्तन की नैया, फैंसी भवोदधि प्रान । पधारे महावीर भगवान ॥ पूग्व-भव बत्तीस शास्त्र में, किया प्रमुखता-गान । और अनन्ते भव जिनवर के, नहीं वर्णन में पान ।। पधारे महावीर भगवान । अन्तिम-भव षड़-नाम प्रभु के, गाये भक्ति प्रमान । अल्प ज्ञानि कवि 'धवल कहे किमि, प्रभु अनन्त गुण-खान ।। 'पधारे महावीर भगवान ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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