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________________ 2-20 परमार धरणीवराह या घरणीधर राजा के पुत्र सबसे अधिक उपयुक्त समझा जाता है । बाहड़ (वाग्भट्ट) ने विक्रम की ग्यारहवीं शती के ऐतिहासिक स्थान पर निर्माण कला के मार उत्तरार्द्ध में वि०सं० 1059 के पश्चात् की । मुता नमूनों के रूप में कुए, तालाब, पगवाव मनि नैणसी ने भी धरणीवराह के पुत्र बाहड़-छाहड़ किला आदि अब भी विद्यमान है लेकिन इ होने का उल्लेख किया है । 'वाग्भट्टमेरु' शब्द का कोई सुरक्षा नहीं है, वे दिनों दिन विखर रहे. उल्लेख चौहान चाचिग देव के संघामाता मन्दिर नाकोड़ा-राजस्थान प्रदेश के परिणी के वि०सं० 1319 के शिलालेखों में मिलता है। भू-भाग में प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों, प्राण भाट साहित्य के अनुसार 11वीं शताब्दी के पास स्थापत्य एवं शिल्पकलाकृतियों के बेजोड़ नमः पोस इस क्षेत्र पर ब्राह्मण शासक वाप्पड़ का आधुनिक साज सज्जा से परिपूर्ण, धार्मिक धी प्राधिपत्य था और उसने अपने नाम पर इस नगर कोरण से भारत विख्यात जैन धर्मावलम्बियों। का नामकरण बाप्पड़ाऊ रखा। बाड़ ब्राह्मण के सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ राजस वशजों से 12वीं शताब्दी में परमार धरणीवराह प्रदेश के बाड़मेर जिले के बालोतरा को के वंशज बाहड़ चाहड़ ने लेकर इसका नाम 7 मील दुर ऐतिहासिक नगरी जसौल. बाहड़मेर-बाहड़मेरु रखा । वि०सं० 17वीं शताब्दी मल्लीनाथ की साधना भूमि तिलवाड़ा,राठौर राजा तक यही स्थान बाहड़मेर के नाम से जाना जाता की प्राचीन राजधानी व वैष्णव धर्मावलम्कि रहा। प्रौरंगजेब के समय वि०सं० 1744 के के लोकप्रिय तीर्थ खेड़ के पास गगनचुम्बी पहा लगभग यहां पर वीर दुर्गादास राठौड़ का निवास के बीच में जिसके चारों ओर विशाल काले रहा । राठौड़ दुर्गादास ने बादशाह औरंगजेब के पाषाणों की पहाड़ियों एवं एक तरफ मरुभूमि पौत्र, अकबर के पुत्र और पुत्री बुलन्द अख्तर और परिचायक रेतीली रेत का टीला है। इसमें सफियायुन्निसा को यहीं जूना के दुर्ग में सुरक्षित के साहित्य, शिल्प एवं स्थापत्य कला में। रखा था। जूना का प्राचीन दुर्ग परमारों और धर्मावलम्बियों का विशेष योगदान रहा है। चौहानों की देन है। ऐतिहासिक घटना चक्रों के के प्रत्येक क्षेत्र में सूक्ष्म शिल्पकलाकृतियों गगनचुर बीच इस पर छोटे बड़े आक्रमण बराबर होते रहे ईमारतों के रूप में अनेक जैन तीर्थस्थान बने। जिसके कारण इसका पतन होना प्रारम्भ होगया हैं। इन धार्मिक शृंखलामों में कड़ी जोड़ने का और धीरे धीरे यहाँ के लोग आसपास के स्थानों श्वेताम्बर जैन तीथ श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ पर जाकर बसने लगे। वि.स. 1640 तक इस भी प्राचीन वैभव सुन्दर शिल्पकला, दानदाता नगर के आबाद होने के कारण वर्तमान जूना ही की उदारता ऐतिहासिक पृष्ठभूमि त्या बाहड़मेर कहलाता था। वि०सं० 1608 में रावत मुनिवरों का प्रेरणा केन्द्र, तपस्वियों की मात्र भीमाजी ने स्वतंत्र रूप से बाड़मेर बसाया जो भूमि, पुरातत्व विशेषज्ञों की जिज्ञासा मा अजकल राजस्थान प्रदेश का जिला मुख्यावास है। जैनाचार्यों द्वारा उपदेश देकर निर्मित अनेकों है। रेगिस्तान के प्रांचल में बसा यह स्थान प्रतिमाओं का संग्रहालय पार्श्वप्रभु के जन्म कल्या बाड़मेर नगर से 14 मील दूर जसाई के पास के मेले की पुण्य भूमि अाधुनिक वातावरण पहाड़ियों की गोद में पथरीलीभूमि में आया हुआ परिपूर्ण देश का गौरव बनी हुई हैं। है। बाड़मेर से जसाई तक पक्की ड मर की सड़क, नाकोड़ा स्थल का प्राचीन इतिहास से को बनी हुई है मागे कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। सम्बन्ध है। वि० सं० 3 में इस स्थान के यहां तक पहुंचने के लिये जीप यातायात का साधन होने का प्राभास मिलता है । यद्यपि इस समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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