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________________ 2-10 कुण्डपुर दो भागों में विभक्त था। एक था 'नातिक' को वैशाली से 7 ली की दूरी पर बताया छत्रियकुण्ड तथा दूसरा था ब्राह्मणकुण्ड जिसमें गया है। कनिधम ने 1 ली = 1/5 मील माना है।" क्रमशः सिद्धार्थ त्रिशला, व ब्राह्मणकुण्ड में देवानंदा अतः स्पष्ट होता है कि कुण्डग्राम से वैशाली की का निवास था। ब्राह्मणकुण्ड के पश्चिम दिशा में दूरी 1/5 मील थी। वर्तमान 'वासुकुण्ड' की स्थिति क्षत्रियकुण्ड पड़ता था जिसके मध्य में बहुशाल वैशाली के भग्नावशेष भवन से इसी अनुपात चैत्य था। कुण्डग्राम की स्थिति के विषय में श्री से है । नेमिन्द्रसूरि ने भी कहा है कि इसी कुण्डग्राम के क्षत्रियकुण्ड में 500 ई. पू. अस्थि इह भरहवासे मझिमदेसस्स मण्डणं परमं । राजा सिद्धार्थ की धर्म पत्नी रानी त्रिशला की कुक्षि सिरि कुण्डगाम नयर वसुमइरमणीतिलयभूयं । से भगवान महावीर पैदा हुए थे यथा (पत्र 26) सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवर्षे विदेहकुण्डपुरे समस्त तथ्यों की परख से स्पष्ट होता है कि देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान्सप्रदर्श्य विभुः ।। क्षत्रियकुण्ड व ब्राह्मणकुण्ड दो अलग-अलग खण्ड चैत्र शुक्ला त्रयोदशी सोमवार 599 ई. पू. थे जिसका समन्वित नाम कुण्डपुर था। इसमें ही ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ रहते थे जिनकी का वह पावनतम समय युग को पालोकित कर धर्म पत्नी त्रिशला की कुक्षि से महावीर पैदा हुए। धन्य हो गया जिसकी महत्ताइस 'ज्ञात' को ही 'ज्ञातिक' और 'नातिक' शब्द दृष्ट ग्रहैरथ निजोत्वगत समप्रैलग्ने, से जाना गया है । महावीर को इसीलिए 'ज्ञातपुत्र' यथा पतित कालमसूतराज्ञी । 'नाटपुत्र' आदि नामों से भी सम्बोधित किया चैत्र जिनं सिततृतीयजयागया है। निशान्ते सोभाहिचन्द्रमसि चौत्तरफाल्गुनिस्ये _ 'नातिक' की स्थिति के विषय में बताया गया तथा है कि यह 'वज्जी' देश के अन्तर्गत वैशाली और चैत्र सितपक्ष फाल्गुनि, कोटिग्राम के बीच में था जबकि कपिलवस्तु शशांक योगे दिने त्रयोदश्याम् । और राजगृह के बीच के स्थानों का उल्लेख भी जज्ञ स्वोच्चस्थेषु ग्रहैषु, इस प्रकार किया गया है "कपिलवस्तु से राजगृह सौम्येषु शुभ लग्ने । 60 योजन दूर था तथा राजगृह से कुशीनगर 25 भगवान महावीर के जन्म से वास्तव में विश्व योजन की दूरी पर स्थित था । बुद्ध की यात्रा में में एक प्रालोक क्रोध उठा । अाज भी वही आलोक भी यह ग्राम पड़ा था। युग के निविड अन्धकार में भूले भटकों को मार्ग महापरिनिव्वान सुत्त के चीनी संस्करण में दर्शन कर रहा है । 1. जीव एगानिमु हे खत्तिय कुण्ड ग्गामं नयां मपझमजम्मेणं निगच्छई निगच्छिता जेणेव माहरणकुण्डगा में नयोजणेव वहुसालए चइए। (वही) 2. नादिकाति एव तलाकं निस्साव द्विण्णं चूल्लयितु मह पितुपुत्तानं द्वे माया नादकेति एकस्मि अ.तिशा में (दीघनिकाय) 3. डिक्शनरी पादपाली प्रापरनेम्स, खण्ड 1 पृ. 976. 3. (a) Sino Indian Studies Vol I Part 4, Page 195 July 1945 (b) Com Studies, “The Paninium Sutta and its Chinese Version by Faub. 5. Ancient Geography of India p. 658 6. निर्वाणभक्ति 4 7. वर्द्धमान चरित्र 17158 8: नि. भ. 5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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