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________________ महावीर काल में सामाजिक व्यवस्था डा० श्री कस्तूरचन्द्र कासलीवाल Jain Education International भगवान महावीर का युग प्राज से 2500 वर्षों से भी पहले का युग था । वे ऐसे युग में पैदा हुए थे जब देश की राजनीति एव समाज एवं अर्थ व्यवस्था में धर्म नीति का सबसे अधिक प्रभाव, था । महावीर के कैवल्य के पूर्व देश में विभिन्न धर्म थे । इनमें वैदिक, श्रमरण, श्राजीवक एवं बौद्ध धर्म के नाम विशेषतः उल्लेखनीय थे । संजयबेलट्ठि पूर्णकाश्यप मक्खली गोशाल, बुद्ध आदि सभी प्रपने प्रापको सर्वज्ञ घोषित करते थे मौर उन्होंने वैदिक धर्म के अतिरिक्त भी भिन्न-भिन्न धर्म स्थापित कर लिये थे । महावीर के पूर्व होने वाले 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने जिस धर्म का समाज को उपदेश दिया था उसके अनुयायी भी सीमित संख्या में थे । किन्तु श्रमण संघ उन्नति की भोर नहीं था | जातिवाद एवं वर्णाश्रम प्रथा का सबसे अधिक था। ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य जाति ही द्विज शब्द का प्रयोग कर सकती थी और वे ही धार्मिक विधि विधान सम्पन्न करने की अधिकारिणी समझी जाती थी । महावीर का युग क्रियाकांड का युग था । पुरोहितवाद का समाज पर पूर्ण प्रभाव था । राजा महाराजाओं के दरबार में भी इनका बोलबाला था और शासन के प्रत्येक कार्य में उनका प्रवेश था। धार्मिक भावनाएं श्रद्धा एवं सद् धनुष्ठान के स्थान पर अंध विश्वास, हिंसा एवं प्रचलित रूढियों को पुष्ट कर नही थी । " यथार्थं पशवः स्रष्टाः एवं वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" जैसे सूत्रों की रचना कर ली गयी थी । राजा शक्ति के पुंज थे। उनकी आज्ञा ईश्वरीय प्राज्ञा होती थी । वर्णाश्रम व्यवस्था के नियन्त्ररण के कारण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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