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________________ था । रहता था प्रत: देश धन धान्य से सम्पन्न पाश्चात्य भौतिकवादी कथित विकसित देशों से अपने यहां बड़े-बड़े कल-कारखानों का निर्माण किया । यह स्वाभाविक था कि कई मनुष्यों की श्रम शक्ति से बने हुए माल की अपेक्षा, मशीनों द्वारा उतना ही माल बनाने में कम प्रादमी लगते तः माल भी सस्ता पड़ता। बची हुई श्रम शक्ति उनने अन्य सुख साधनों का उत्पादन कर उसका अपने रहन-सहन का स्तर ऊंचा करने में और विदेशों को बेचकर अपनी मशीनों के लिए कच्चा हाल खरीदने में उपयोग किया । अपना पक्का साल बेचने और अपनी मशीनों के लिए कच्चा सील खरीदने को मार्केट के लिए कथित पिछड़े ए देशों को अपने प्रभाव में रखने लिए उन देशों प्रतिस्पर्धा भी चल गई। पिछड़े हुए देशों का न खिंच कर विकसित देशों में जाने लगा भौर कारी भी फैलने लगी तो वे अपना वैसा हो कास कर समृद्धि के स्वर्ण मृग को प्राप्त करने तृष्णा में पड़ गये । तब विकसित देशों से सीनें खरीदना भी शुरू कर दिया और उनके रबों डॉलर और पौंड के ॠरणी बन गये । परि राम स्वरूप भयंकर आर्थिक संकट भौर बेकारी समस्या पैदा हो गई है । बेकारी विकासशील ओं में ही नहीं विकसित देशों में भी फैलती जा है ! महात्मा गांधी ने क्या कहा था— उपरोक्त चिन से विदित होगा कि इस समय चारित्र संकट, हरी मौर मँहगाई की जो विश्वव्यापी समस्या है का कारण पाश्चात्य भोगवादी सभ्यता और उसकी योगिक तकनीक है । इसे अपनाकर सभी देशों विपना विकास नहीं प्रत्युत विनाश किया है। लिए महात्मा गांधी ने सन् 1908 में अपनी हे पुस्तक हिंद स्वराज्य में इस सभ्यता से को सावधान करते हुए यह लिखा था :-- Jain Education International 1-145 "यह सभ्यता मधमं है पर इसने यूरोपवालों पर ऐसा रंग जमाया है कि वे इसके पीछे दीवाने हो रहे हैं ।" "यह सभ्यता ऐसी है कि अगर हम धीरज रक्खें तो अंत को इस सभ्यता की भाग सुलगानेवाले प्राप ही इसमें जल मरेंगे" "जो लोग हिन्दुस्तान को बदल कर उस हालत पर ले जाना चाहते हैं......... ........... वे देश के दुश्मन हैं, पापी हैं।" श्राध्यात्मवाद क्या है - प्राध्यात्मवाद की यह मान्यता है कि सुख का स्रोत हमारी प्रात्मा के भीतर है, सुख कहीं बाहर से नहीं प्राता । हम जितने अधिक भ्रात्म निर्भर होकर भौतिक सुख साधनों की अपनी भावश्यकताओंों को व उनके संग्रह को कम करेंगे उतने ही अधिक हम सुखी होंगे । भौतिक सुख साधनों की तृष्णा से रहित निग्रंथ जैन मुनि की चर्या सुखी जीवन के उस प्रादर्श का प्रतीक है। यही नहीं, माध्यात्मवाद ही समविष्टगत सुख शांति का भी साधक है । उपरोक्त भावना सामाजिक प्रवाह बन जाने पर अधिकांश व्यक्ति स्वयं स्फूर्त संयम का पालन करते हुए समाज के भौतिक सुख साधनों के उत्पादन का कम से कम भाग लेना चाहेंगे प्रतः ऐसे समाज में वर्ग संघर्ष, छीना झपटी मोर चारित्र संकट की समस्या पैदा ही नहीं होगी । इसी विचार से महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्र जनतांत्रिक सुखी भारत की अपनी कल्पना निम्नलिखित शब्दों में प्रकट की थी"प्रत्येक व्यक्ति को इतना ही मिलेगा कि उसकी सब प्राकृतिक प्रावश्यकताएं पूरी हो जावे, इससे अधिक नहीं" । परन्तु माधुनिक तकनीक के विवेक पूर्ण उपयोग के विरोधी नहीं थे। उतने सिंगर की सिलाई मशीन की प्रशंसा की थी मोर इस प्रकार की मशीनों और उसके निर्माण को लगाये जाने वाले कारखानों का समर्थन किया था । यह कहना कि शशध्यात्मवाद का विज्ञान से विरोष है मौर उनमें समन्वय बिठाने की आवश्यकता है, भ्रम मात्र है । मावश्यकता तो विज्ञान के सदुपयोग की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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