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________________ हिंसा, कूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, किबाड़ों से बन्द एक मानवी कोठरी, अधेरी ! षट् षट् दर्शनों की खट् खट् से खोला गया इसे हार गए मिस्त्री महान जब युग के ! साधना से सधकर तब साधक महावीर ने हिय के नयन जब खोले और यों बोले"कोठरी बाहर से नहीं अन्दर से बन्द है । एतदर्थं बाहर से नहीं अन्दर से वह खुलनी है ।" जीवन के इस प्रकार खुल गए किबार, अज्ञ तम मिट गया और प्रकाश पूर्ण हो गयी कमनीय कोठरी जहान में ! बाहरी विधयां युग के विधान बड़े, हो गए व्यर्थ सब रहे पड़े ! जनता समय की तब बोल उठी एक स्वर ! जय जय युग नाम, वीर प्रभु मेरे प्रणाम ! ! Jain Education International For Private & Personal Use Only जय जय युग नाम ! बोर प्रभु ! मेरे प्रणाम !! रचयिता डॉक्टर महेन्द्रसागर प्रचंडिया, अलीगढ़ www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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