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________________ भगवान महावीर का शारीरिक एवं गुणों का प्राचीन वर्णन करवाने के लिए 'उववाइय सूत्र' के भगवान महावीर के वर्णन सम्बन्धी पाठ का हिन्दी अनुवाद यहां प्रकाशित किया जा रहा है। सांस्कृतिक इतिहास के लिए 'उवावाइय सूत्र' बहुत ही महत्त्व का ग्रन्थ है। इसीलिए इससे पूर्ववर्ती प्रग सूत्रों में भी इसके वर्णनों का हवाला दिया गया है। इस सूत्र के महत्व के सम्बन्ध में यह उक्ति प्रसिद्ध है'उवव ई, सूत्रों की माई' अर्थात् यह उपांग सूत्र सब सूत्रों की माता यानी कुंजी है। इस सूत्र का हिन्दी अनुवाद मुनि उमेशचन्द्र जी ने किया है और साधु मार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ, सैलाने से सम्वत् 2020 में प्रकाशित हुआ है। इस ग्रन्य में बहतही पाठनीय सामग्री है। पाठक स्वय पढ़ कर लाभ उठावें । अब उववाइय सूत्र के महावीर वर्णन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है-श्री अगरचन्द नाहटा उस काल और उस समय में श्रमण भगवान (चा के समीप पधारे)। वे घोर ता-या करने भगवान महावीर सम्बन्धी विवरण जैन से 'श्रमगा' नाम से प्रसिद्ध थे। समस्त ऐश्वय से पागामों में प्राप्त होता है वह कई दृष्टियों से युक्त होने के कारण 'भगवान' कहे जाते थे । देव बहुत ही महत्वपूरण है। प्राचीनतम प्रचारांग आदि के द्वारा उपद्रव किये जाने पर भी अपने मादि अंग सूत्रों के बाद पहला उपांग 'उक्वाइन' मार्ग पर वीरता से डटे रहे, अत: देवों ने उन्हें सूत्र है, जिसमें भगवान महावीर, चम्पानगरी में महावीर' नाम से प्रतिष्ठित किा था। (के वनपधारे और उनके वन्दनार्थ कूलित महाराजा बड़े ज्ञा होने पर पहले पहल श्रुतधर्म करने के वाले भक्ति भाव से गये, इस प्रसग से चम्म नगरी, होने से) वे प्रादिकर्ता थे और (साधु, साध्वी. उसके चैत्य, वन खण्ड, अशोक वृक्ष, शिला पट्टा, धावक और श्रविका रूप चतुर्विध संघ के स्थापक राजा-रानी का वर्णन करने के बाद सूत्रकार ने होने के कारण) तीर्थङ्कर' थे। स्वयमेव-किसी की भगवान महावीर का वर्णन किया है, उसमें उनके सहायता या निमित के बिना ही उन्होंने बोध गुणों और अतिशयों के वर्णन के साथ-साथ शरीर प्राप्त किया था। वे पुरुषों में उत्तम थे क्योंकि और उसके अंग प्रत्यंग अर्थात शिस्त्र से लेकर नख उनमें सिंह के समान शौयं का उत्कृष्ट विकास तक का जो विशिष्ट वर्णन मिलता है, वह अन्यत्र हुआ था, पुरुषों में रहते हुए भो श्रेष्ठ सफेद कमल कहीं नहीं मिलता। इसलिए पाठकों की जानकारी के समान सभी प्रकार की अशुभतायें मलिनतायें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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