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________________ 1-89 साधन मात्र है। शरीर निर्माण में बाहरी कारण मुक्खो, अर्थात् जो अपनी प्राप्त सामग्री का जरूरतपृथ्वी जल आदि भौतिक पदार्थ हैं और प्रांतरिक... मंद लोगों में वितरण नहीं करता है वह कभी कारण आत्म तत्व है। मोक्ष प्राप्त नहीं करता है। वितरण का यह प्रात्मा के साथ बघे कर्मों से शरीर का सिद्धांत समता मूलक समाज रचना के लिए प्रति निर्माण होता है । जैसे जैसे प्रात्मा के बुरे कर्म उपयोगी है। घटते जाते हैं, प्रात्मा की चेतना शक्ति का विकास _अपरिग्रह पर जोर देते हुए भगवान महावीर होता जाता है। वही विकास इन्द्रिय, मन बुद्धि ने कहा कि चल-अचल सम्पत्ति का प्रावश्यकता से प्रादि के विकास के रूप में प्रकट होता है । अधिक संग्रह न करो। धन-धान्य व भोग सामग्री इस प्रकार प्राध्यात्मिक विकास के साथ-साथ की मर्यादा करो और मर्यादा से अधिक न रखो। इन्द्रिय, शरीर प्रादि के रूप में भौतिक विकास अपरिग्रह का यह विधान समाजवादी अर्थव्यवस्था भी स्वतः होता जाता है। के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ___भगवान महावीर ने कहा कि भौतिक साम भौतिक वादी मार्थिक, सामाजिक व राष्ट्रीय ग्नियों का मिलना बुरा नहीं है। बुरा है उनका समस्याएं सुलझाने के लिए केवल नियम बनाकर दुरुपयोग करना । वे सामग्रियाँ दुरुपयोग करने वातावरण को बदलना चाहते हैं परन्तु इससे से विनाश को और सदुपयोग करने से विकास की बाहरी वातावरण ही बदलता है, समस्या का कारण बन जाती हैं । भौतिक सामग्रियों से सेवा उन्मूलन नहीं होता है । वह समस्या अपना रूप व परोपकार करना उनका सदुपयोग है । इससे बदलकर पुनः प्रस्तुत हो जाती है । कारण कि पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन मगलमय बनता है। समस्या की जड़ व्यक्ति के हृदय में स्थित बुराइयां भोतिक सामग्रियों का भोग विलास के लिए है। अतः जब तक व्यक्ति का हृदय परिवर्तन संग्रह करना तथा उनसे केवल अपना ही सुख न हो व हरी वातावरण बदलना सार्थक नहीं हो सम्पादन करना उनका दुरुपयोग है, सामाजिक सकता। महावीर के बतलाए हुए मार्ग अर्थात् अपराध है। इससे व्यक्ति व समाज में लोभ व अहिंसा, संयम, सेवा, त्याग, अपरिग्रह से व्यक्ति भोग की प्रवृतियां अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं। का हृदय परिवर्तन होता है। यही समस्यामों के इस सम्बन्ध में भगवान महावीर का कथन है- निवारण का सबसे उत्तम उपाय है। लोभो सच्व विणासणो, भोगी भमइ संसारे, अर्थात् वर्तमान युग विज्ञान का युग है । इसमें प्रत्यक्ष लोभ सर्वनाश करने वाला है और भोग संसार में प्रमाण व प्रयोग को कसौटी पर खरे उतरने वाले दु.ख देने वाला है । लोभ और भोग रूप भौतिक- सिद्धान्त , को स्थान मिलता है। महावीर का वाद के कारण प्राई नानव जाति संताप, संक्लेश, सिद्धान्त कारण कार्य पर प्राधारित होने से प्रत्यक्ष भय प्राति अगणित दःखों से पीडित प्रमाण व प्रयोग की कसौटी पर पूरा खरा उतरता है तथा विश्व युद्ध से कभी कभी सर्वनाश का ___ है तथा व्यावहारिक व तत्काल फल देने वाला है । खतरा सदा सिर पर मंडरा रहा है। आज के युग में इसकी पूर्ण प्रावश्यकता व उपयोइस मनिष्ट स्थिति से बचने का उपाय भगवान गिता है। अतः महावीर द्वारा प्रतिपादित तत्व महावीर के बताए हुए सेवा और पारिग्रह के ज्ञान, स्याद्वाद, कर्मवाद आदि सिद्धान्त विश्व की सिद्धान्तों को अपनाना ही है । महावीर ने सेवा का समस्याएं सुलझाने, बुराइयों व दुःखों को दूर करने महत्व बताते हुए कहा-असंविभागी ण हु तस्स में पूर्ण सक्षम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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