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________________ 1-56 कर प्रकृति वाले जीव के गर्भ में आते ही उसके दीक्षा के पूर्व महावीर युवराज थे। उनके प्रभाव से दूर-दूर तक विविध प्रकार की बीमारियाँ सुन्दर एवं सुकुमार शरीर की रक्षा के लिए सभी एवं प्रतिवृष्टि, अनावृष्टि तथा दुर्भिक्ष जैसी भयंकर साधन सम्पन्न व्यवस्थाएं थीं। एक ओर उनका विपत्तियाँ स्वयमेव शान्त हो जाती हैं । अतः तीर्थ- वह अत्यन्न सुकोमल शरीर था, तो दूसरी मोर कर के गर्भावतरण के लिए "गर्भकल्याणक" कहा जैन तपस्या की घनी कर्कशता, रूक्षता एवं बीहड़ता जाता है। 9 मास के बाद जब वह जन्म लेता है, परस्पर में उन दोनों के सामञ्जस्य की कल्पना भी तब उसके प्रभाव से प्रकृति एवं प्रत्येक वर्ग के प्राणी कठिन थी किन्तु लोककल्याणकारी दृढ़ इच्छाशक्ति प्रपने-अपने क्षेत्र में आशातीत समृद्धि प्राप्त करते ने उस कुसुमादपि कोमल कुमार को ज्रिादपि हैं, अतः उसे “जन्मकल्याणक" कहा जाता है। कठोर बना दिया। शोकाकुल परिवार, मित्रों तीसरी अवस्था दीक्षा अथवा तप-सम्बन्धी है। रिश्तेदारों तथा प्रजाजनों की मूर्छावस्था एवं उनके कुमारकाल की समाप्ति पर तथा सांसारिक सुखों बार-बार जमीन में गिरने-पड़ने तथा दहाड़मारकर के प्रति विराग भाव जगने पर उनके प्रति माया- रोने की स्थिति भी उनके दृढ़ निश्चय को न बदल मोह के त्याग का जन-जीवन पर अच्छा प्रभाव सकी। वे शीघ्र ही महाभिनिष्क्रमण कर समीपवर्ती पड़ता है, अतः तीर्थकर जीव की दीक्षा को दीक्षा 'नाथवन' अथवा 'ज्ञातृक वन खण्ड' में पहुंचे और प्रयवा “तप-कल्याणक" कहा गया है। घोर- अपने बहमूल्य वस्त्राभूषण उतार डाले, साथ ही तपश्चर्या के कारण ज्ञानावरणादि घातिया-कर्मों के सुन्दर आकर्षक घुघराले केशों को भी पांच वार क्षय होने पर उनकी आत्मा में लोक कल्याणकारी मुट्ठियों में भरकर उखाड़ फेंके । इस प्रकार त्रिशला विशिष्ट ज्ञान-केवलज्ञान की जागृति होती है अतः प्रियकारिणी का वह दुलारा वर्धमान महावीर उसे "केवलज्ञान कल्याणक" कहा गया है । अन्तिम यथाजात-शिशु जैसा रूप धारणकर तपस्या में लीन अवस्था में प्राय-कर्म के क्षय होने पर भव्यजीवों को शुद्ध, बुद्ध एवं निर्मल आत्मा का बोध कराने महावीर के नाना तथा वैशाली-गणराज्य के वाला एवं शाश्वत सुख प्रदान करने वाला मोक्ष राष्ट्रपति चेटक महाराज ने अपने प्रिय नाती के प्राप्त होता है अतः उसे "मोक्ष कल्याणक" कहा दीक्षा दिवस की स्मृति में उसी दीक्षा स्थल पर एक गया है। विशाल "महावीर कीत्ति स्तम्भ" का निर्माण कराय .. उपर्युक्त कल्याणकों के क्रम में भगवान महावीर था, जो आज भी वैशाली की सीमा पर स्थित है। का माज तीसरे क्रम का दीक्षा अथवा "तप मूल घटना को विस्मृत कर देने के कारण पुरातत्व कल्याणक" का पूण्य दिवस है। आज से लगभग जगत में वह पाज अशोक स्तम्भ के नाम से 2542 वर्ष पूर्व महावीर ने कुण्डग्राम का युवराज विख्यात है तथा स्थानीय लोग उसे "भीमसेन की प्रद तथा राज्य, परिवार, नाते रिश्तेदार एवं ऐश्वर्य लाठी" कहकर पुकारते हैं। सुखों का मगशिर कृष्ण 10 तदनुसार ई० पू० के दीक्षित होने के बाद महावीर की सर्वप्रथम रविवार 8 दिस० के अपराह न में निर्ममतापूर्वक पारणा (पाहार) विदेह जनपद के कोल्लाग सनिवेश त्याग कर नाथवन में दीक्षा धारण की थी, जैसा के राजा कूल चन्द्र के यहां 72 घण्टों के उपवास के कि उल्लेख मिलता है : ___ बाद हुई। चूकि जैन साधु वर्तनों का स्पर्श नहीं मग्गसिर बहुलदसमी अवरण्हे उत्तरासु णाधवणे। कर सकते, अतः वह पाहार उन्होंने दोनों हथेलियों तदिय खवयाम्भि गहिदं महव्वदं बढ़डमारणेण॥ को पात्र जैसा बनाकर उससे सावधानी पूर्वक तिलोय० 607 ।। समपाद खड़े होकर, ग्रहण किया। उसके बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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