SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1-54 14. वही 1/9/4/11 16. वही 1/9/4/10 16. डा. कामता प्रसाद जैन : भगवान महावीर पृ० 93 17. उत्तरपुराण 74/315 उत्तरपुराण 72/305 असग : वर्धमानचरितम् 17/121 डा० कामताप्रसाद जैन : भगवान महावीर पृ० 92 गुणभद्र : उत्तर पुराण 74/381-322 प्राचाराङ्ग 1/1/9/5 23. मुनि सुशीलकुमार : जैन धर्म पृ० 28 उत्तरपुराण 74/331-337 मुनि सुशीलकुमार : जैन धर्म पृ० 28 26. प्राचाराङ्ग 1/9/1/8 27. प्राचाराङ्ग 1/8/3/3-8 28. वही 1/9/3/13 29. पद्मचन्द्र शास्त्री : तीर्थकर वर्धमान महावीर पृ० 62 30. उरग गिरि जलण सागर नहतल तरुमण समो म जो होइ। भमर मिय धरणि जलरुह रवि पवण समो म सो समणो। स्थानाङ्ग सूत्र अर्थवत्ति-स श्रमणो भवति इति प्रतिपंद सम्वध्यते । यः उरगसमः परकृताश्रयनिवासात् । गिरिसमः परिषहोत्कम्परहित्यात् । ज्वलनसमस्ते जस्तपोयमत्वात् । तृणादिष्विब सूत्रार्थेष्व. तृप्तत्वादपि नमस्तक्त समः सर्वत्र निरालम्बनत्वात् । तरुगणसमः सुखदुः खयोरदर्शित विकारत्वात् । भ्रमर समोऽनियतवृत्ति त्वात् । मृगसमः संसारभयाद्विग्न त्वात् । धरणिसमः सर्वरवेदसहिष्णुत्वात् । जलरुहसमः कामभोगाद् भवत्वेऽपि पजलाभ्यामिव तदूहवं वृत्तः। रबिसनः धर्मास्ति कायादिलो कमधिकृत्याविशेषण प्रकाशकत्वात् । पवन समश्च सर्वत्रा प्रतिबद्धत्वात् । एवंविधो य स श्रमो भयति ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष 31. पांचाराङ्ग सूत्र 1/9/2/2-3 32. वही 1/9/2/5-6 33. सकलकोति : महावीर पुराण त्रयोदश प्रकरण पृ० 91 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy