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________________ (४) गवेषणापूर्ण निबन्ध है, जिसमें वर्तमान काल में बुद्धवचन की प्रासङ्गिकता पर प्रकाश डाला गया है। प्रो. रामशंकर त्रिपाठी जी द्वारा प्रस्तुत 'बौद्धदर्शन में कालतत्त्व' जिज्ञासुवों के लिए अत्यन्त उपादेय एवं शोधपरक है। इसमें बौद्धदर्शन के चार प्रस्थानों-वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार तथा माध्यमिक दृष्टिकोण से कालतत्त्व पर प्रकाश डाला गया है, जो बौद्ध-विद्या के गवेषकों के लिए अत्यन्त उपादेय एवं पथ-निर्देशक बन सकते हैं। इसी प्रकार ‘बौद्धधर्म में मानवतावादी विचार', 'अभिधर्म और माध्यमिक दर्शन', 'थेरवाद बौद्धदर्शन में निर्वाण', 'बोधिसत्त्व अवधारणा के उदय में बौद्धेतर प्रवृत्तियों का योगदान' आदि निबन्ध अत्यन्त मौलिक एवं गवेषणापूर्ण हैं। संस्कृतविद्या से सम्बन्धित 'काव्यशास्त्र की प्रशाखा के रूप में कवि-शिक्षा का मूल्याङ्कन', 'शोभाकर मित्र की काव्यदृष्टि' नवीन चिन्तन से ओत-प्रोत तथा अत्यन्त उपयोगी निबन्ध हैं। संस्कृत में लिखित "नेपालराष्ट्र बौद्धदर्शनस्याध्ययनाध्यापनयोर्व्यवस्था तद्विश्लेषणं च' शीर्षक निबन्ध नेपाल में बौद्ध अध्ययन-अध्यापन की स्थितियों का मूल्याङ्कन प्रस्तुत करता है। यह निबन्ध डॉ. रमेश कुमार द्विवेदी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। 'बंगाल के प्राचीन बौद्धविहारों में श्रमणों के नियम और शिक्षा व्यवस्था', 'भोटदेश में बौद्धधर्म एवं श्रमणपरम्परा का आगमन' अत्यन्त सूचनाप्रद तथा खोजपरक निबन्ध हैं। __प्राकृत एवं जैनविद्या से सम्बन्धित 'जैनदर्शन में कर्म-सिद्धान्त', 'जैनदर्शन का व्यावहारिक पक्ष', 'जैन श्रमण परम्परा और अनेकान्त दर्शन' जैन सिद्धान्तों तथा जैनदर्शन को उजागर करते हैं। ये सभी निबन्ध अत्यन्त मौलिक तथा गवेषकों के लिए मार्गदर्शक हो सकते हैं। प्राकृत विद्या से सम्बन्धित 'प्राकृत-कथा-साहित्य-उद्भव, विकास एवं व्यापकता', 'शौरसेनीप्राकृत साहित्य के प्रमुख आचार्य और उनका योगदान' प्राकृत साहित्य के गवेषकों के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं उपादेय हैं। अन्त में 'काशी और जैन श्रमणपरम्परा' नामक शोध-निबन्ध काशी से सम्बद्ध जैन परम्परा का परिचय प्रस्तुत करता है। इस प्रकार ये सभी निबन्ध अत्यन्त मौलिक एवं शोधार्थियों के लिए उपादेय हैं। ये सभी निबन्ध उन सम्भावनाओं को उजागर करते हैं, जो भारतीय विद्याओं की समग्रता में अनुशीलन का पाथेय बन सकती हैं। पालि गाथाओं में उपनिबद्ध 'सच्चसङ्केप' देवनागरी लिपि में प्रथम बार प्रस्तुत है। प्रो. लक्ष्मी नारायण तिवारी ने रोमन, बर्मा के छट्ठसंगायन संस्करण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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