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________________ बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा तस्मा सन्तो सप्पुरिसा कत्तजू कतवेदिनो। भरन्ति मातापितरो पुब्बे कतमनुस्सरं ।। करोन्ति नेसं किच्चानं यथातं पुब्बकारिने । ओवादकारी भतपोसी कुलवसं अहापये । सद्धो सीलेनसम्पन्नो पुत्तो होति पसंसियो ।। ___ (अं. नि. सुमनवग्ग) जो माता पिता की मन से सेवा नही करते हैं, वे निरयलोक को जाते हैं। धन की कामना करने वालों का धन भी विनष्ट हो जाता है और कष्ट पाते हैं किन्तु जो माता-पिता की विप्रसन्न मन से सेवा करते हैं वे जीवन में आमोद, प्रमोद, हास्य क्रीड़ा एवं आनन्द पाते हैं। जो माता-पिता की सेवा करते हैं वे यहाँ सब कुछ पाते हैं, और प्रशंसित होते हैं एवं किच्छाभतो पोसो मातु अपरिचारको । मातरि मिच्छा चरित्वान निरयं सो उपपज्जति । एवं किच्छाभतो पोसो पितु अपरिचारको। पितरि मिच्छा चरित्वान निरयं सो उपपज्जति ।। धनं पि धनकामानं नस्सति इति मे सुतं । मातरं अपरिचरित्वान किच्छं वा सो निगच्छति ।। धनं पि धनकामानं नस्सति इति मे सुतं । पितरं अपरिचरित्वान किच्छं वा सो निगच्छति ।। आनन्दो च पमोदो च सदाहसितकीळितं । मातरं परिचरित्वान लभमेतं विजानतो ।। आनन्दो च पमोदो च सदाहसितकीळितं । पितरं परिचरित्वान लभमेतं विजानतो ।। धनं च पियवाचं च अत्थचरिया च या इध । समानत्तता च धम्मेसु तत्थ तत्थ यथारहं ।। एते खो संगहा लोके रथस्साणीव जायतो । एते च संगहा नास्सु न मातापितुकारणा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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